रामकिंकर बैज: Difference between revisions

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अपनी पेंटिंग एवं मूर्तियों दोनों में  ही उन्होंने प्रयोग की सीमाओं को नए स्‍तरों पर पहुंचा दिया और इसके साथ ही नई सामग्री का खुलकर उपयोग किया। उदाहरण के लिए, उनके द्वारा अपरंपरागत सामग्री जैसे कि अपनी यादगार सार्वजनिक मूर्तियों में किए गए सीमेंट कंक्रीट के उपयोग ने कला के क्षेत्र में अपनाई जाने वाली प्रथाओं के लिए एक नई मिसाल पेश की। प्रतिमाओं को बेहतरीन बनाने के लिए उनमें सीमेंट, लेटराइट एवं गारे का उपयोग  और आधुनिक पश्चिमी एवं भारतीय शास्त्रीय-पूर्व मूर्तिकला मूल्यों का समावेश करने वाली अभिनव निजी शैली का इस्‍तेमाल दोनों ही समान रूप से विलक्षण थे।<ref name="pp"/>
अपनी पेंटिंग एवं मूर्तियों दोनों में  ही उन्होंने प्रयोग की सीमाओं को नए स्‍तरों पर पहुंचा दिया और इसके साथ ही नई सामग्री का खुलकर उपयोग किया। उदाहरण के लिए, उनके द्वारा अपरंपरागत सामग्री जैसे कि अपनी यादगार सार्वजनिक मूर्तियों में किए गए सीमेंट कंक्रीट के उपयोग ने कला के क्षेत्र में अपनाई जाने वाली प्रथाओं के लिए एक नई मिसाल पेश की। प्रतिमाओं को बेहतरीन बनाने के लिए उनमें सीमेंट, लेटराइट एवं गारे का उपयोग  और आधुनिक पश्चिमी एवं भारतीय शास्त्रीय-पूर्व मूर्तिकला मूल्यों का समावेश करने वाली अभिनव निजी शैली का इस्‍तेमाल दोनों ही समान रूप से विलक्षण थे।<ref name="pp"/>
==सम्मान व पुरस्कार==
वैसे तो रामकिंकर बैज की कलाकृतियों को शुरुआत में लोकप्रिय होने के लिए थोड़ा इंतजार करना पड़ा, लेकिन धीरे-धीरे वह राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों ही स्‍तरों पर लोगों का ध्यान खींचने में कामयाब होने लगीं। उन्हें वर्ष [[1950]] में सैलोन डेस रेलीटिस नूवेल्स और वर्ष [[1951]] में सैलोन डे माई में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया। उन्‍हें एक के बाद एक कई राष्ट्रीय सम्मानों से नवाजा गया। वर्ष [[1970]] में [[भारत सरकार]] ने उन्हें भारतीय कला में उनके अमूल्‍य योगदान के लिए [[पद्म भूषण]] से सम्मानित किया। वर्ष [[1976]] में उन्हें [[ललित कला अकादमी]] का एक फेलो बनाया गया। उन्‍हें वर्ष 1976 में विश्व भारती द्वारा मानद डॉक्टरल उपाधि ‘देशोत्तम’ से और वर्ष [[1979]] में रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय द्वारा मानद डी.लिट से सम्मानित किया गया।
==मृत्यु==
[[कोलकाता]] में कुछ समय तक बीमार रहने के बाद रामकिंकर बैज [[2 अगस्त]], [[1980]] को अपनी अंतिम एवं अनंत यात्रा पर निकल पड़े।


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Revision as of 11:44, 4 October 2021

रामकिंकर बैज
पूरा नाम रामकिंकर बैज
जन्म 26 मई, 1906
जन्म भूमि बांकुरा, बंगाल, भारत
मृत्यु 2 अगस्त, 1980
मृत्यु स्थान पश्चिम बंगाल
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र भारतीय मूर्तिकला
पुरस्कार-उपाधि 'पद्म भूषण' (1970)
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी वर्ष 1925 में रामकिंकर बैज ने शांतिनिकेतन स्थित कला विद्यालय यानी कला भवन में अपना प्रवेश सुनिश्चित किया और इसके साथ ही नंदलाल बोस के मार्गदर्शन में अनेक बारीकियां सीखीं।

रामकिंकर बैज (अंग्रेज़ी: Ramkinkar Baij, जन्म- 26 मई, 1906[1]; मृत्यु- 2 अगस्त, 1980) भारत के प्रसिद्ध मूर्तिकार थे। आधुनिक भारतीय मूर्तिकला के अग्रदूतों में उनकी गणना होती है। 'संभाल परिवार', 'मिल कॉल', 'महात्मा बुध', 'मिथुन', 'सुजात' व 'रविंद्र नाथ टैगोर का आवक्ष' (पोट्रेट) आदि उनके प्रमुख मूर्तिशिल्प हैं। अपने दृढ़ संकल्प से वह भारतीय कला के प्रतिष्ठित प्रारंभिक आधुनिक कलाकारों में से एक बने थे। भारतीय कला में उनके अतुल्य योगदान के लिए वर्ष 1970 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया।

परिचय

रामकिंकर बैज का जन्म 26 मई, 1906 को पश्चिम बंगाल के बांकुरा में एक आर्थिक और सामाजिक रूप से विपन्न परिवार में हुआ। उनको आधुनिक भारतीय मूर्तिकला का जनक भी कहा जाता है।

शिक्षा

वर्ष 1925 में उन्होंने शांतिनिकेतन स्थित कला विद्यालय यानी कला भवन में अपना प्रवेश सुनिश्चित किया और इसके साथ ही नंदलाल बोस के मार्गदर्शन में अनेक बारीकियां सीखीं। शांतिनिकेतन के मुक्त एवं बौद्धिक माहौल में उनके कलात्मक कौशल और बौद्धिक क्षितिज को नए आयाम मिले तथा इस प्रकार से उन्‍हें अपने ज्ञान में और भी अधिक गहराई एवं जटिलता प्राप्त हुई। कला भवन में अपनी पढ़ाई पूरी करने के तुरंत बाद ही वे संकाय के एक सदस्य बन गए और फि‍र उन्‍होंने नंदलाल बोस और बिनोद बिहारी मुख़र्जी के साथ मिलकर शांतिनिकेतन को आजादी-पूर्व भारत में आधुनिक कला के सबसे महत्वपूर्ण केंद्रों में से एक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।[2]

कला शैली

रामकिंकर बैज की यादगार मूर्तियां सार्वजनिक कला में प्रमाणित मील का पत्थर हैं। भारतीय कला में सबसे पहले आधुनिकतावादियों में से एक रामकिंकर ने यूरोपीय आधुनिक दृश्य भाषा की शैली को आत्मसात किया, लेकिन इसके बावजूद वह अपने ही भारतीय मूल्‍यों से गहरे रूप से जुड़े हुए थे। उन्‍होंने पहले आलंकारिक शैली एवं बाद में भावात्मक शैली और फि‍र वापस आलंकारिक शैली में पूरी बेकरारी के साथ अनगिनत प्रयोग किए। उनकी थीम मानवतावाद की गहरी समझ और मनुष्य एवं प्रकृति के बीच पारस्‍परिक निर्भरता वाले संबंधों की सहज समझ से जुड़ी होती थीं।

अपनी पेंटिंग एवं मूर्तियों दोनों में ही उन्होंने प्रयोग की सीमाओं को नए स्‍तरों पर पहुंचा दिया और इसके साथ ही नई सामग्री का खुलकर उपयोग किया। उदाहरण के लिए, उनके द्वारा अपरंपरागत सामग्री जैसे कि अपनी यादगार सार्वजनिक मूर्तियों में किए गए सीमेंट कंक्रीट के उपयोग ने कला के क्षेत्र में अपनाई जाने वाली प्रथाओं के लिए एक नई मिसाल पेश की। प्रतिमाओं को बेहतरीन बनाने के लिए उनमें सीमेंट, लेटराइट एवं गारे का उपयोग और आधुनिक पश्चिमी एवं भारतीय शास्त्रीय-पूर्व मूर्तिकला मूल्यों का समावेश करने वाली अभिनव निजी शैली का इस्‍तेमाल दोनों ही समान रूप से विलक्षण थे।[2]

सम्मान व पुरस्कार

वैसे तो रामकिंकर बैज की कलाकृतियों को शुरुआत में लोकप्रिय होने के लिए थोड़ा इंतजार करना पड़ा, लेकिन धीरे-धीरे वह राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों ही स्‍तरों पर लोगों का ध्यान खींचने में कामयाब होने लगीं। उन्हें वर्ष 1950 में सैलोन डेस रेलीटिस नूवेल्स और वर्ष 1951 में सैलोन डे माई में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया। उन्‍हें एक के बाद एक कई राष्ट्रीय सम्मानों से नवाजा गया। वर्ष 1970 में भारत सरकार ने उन्हें भारतीय कला में उनके अमूल्‍य योगदान के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया। वर्ष 1976 में उन्हें ललित कला अकादमी का एक फेलो बनाया गया। उन्‍हें वर्ष 1976 में विश्व भारती द्वारा मानद डॉक्टरल उपाधि ‘देशोत्तम’ से और वर्ष 1979 में रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय द्वारा मानद डी.लिट से सम्मानित किया गया।

मृत्यु

कोलकाता में कुछ समय तक बीमार रहने के बाद रामकिंकर बैज 2 अगस्त, 1980 को अपनी अंतिम एवं अनंत यात्रा पर निकल पड़े।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. रामकिंकर बैज की जीवनी (हिंदी) fineartist.in। अभिगमन तिथि: 04 अक्टूबर, 2021।
  2. 2.0 2.1 रामकिंकर बैज (हिंदी) pib.gov.in। अभिगमन तिथि: 04 अक्टूबर, 2021।

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