अखाड़ा शकूर खलीफ़ा, वाराणसी

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अखाड़ा शकूर खलीफ़ा की स्थापना 1914 में शकूर खलीफा ने की। पहले यह अखाड़ा घुँघरानी गली, फिर छत्ता तले और उसके बाद 1934 में बेनियाबाग के एक अन्दरूनी किनारे पर लग गया। तब से आज तक यह काशी के प्रमुख पहलवानों को जन्म देता रहा। शकूर मियाँ स्वयं एक अच्छे पहलवान थे। इनके समय में जग्गू सेठ के अखाड़े से खूब काँटे का संघर्ष रहा करता था। लेकिन प्रतिस्पर्धा सिर्फ अखाड़े तक ही। व्यक्तिगत जिन्दगी में तो सभी दोस्त थे। वहाँ प्रसिद्ध पहलवान महादेव को शकूर ने ‘धोबियापाट’ पर चारो खाना चित्त कर दिया था। तत्कालीन रामसेवक को भी इन्होंने परास्त किया। इस अखाड़े के प्रमुख नाम हैं- साडू, राजा, जुमई, कमलू, जपन, खलीफा, वजीफा, सुलेमान, साहेब आदि। राजा के बारे में तो विख्यात है कि इनके जैसी रान पूरे भारत में किसी के पास नहीं थी। सरकारी कुश्ती दंगलों में इसी अखाड़े के गुलाम गौस ने सुप्रसिद्ध मंगलाराय को ‘कैंची’ लगाकर दे मारा था। किन्तु ईश्वरगंगी की कुश्ती में मंगला राय ने उन्हें पटका। शकूर के पुत्र मजीद ने नागपुर में क़रीब 25 कुश्तियाँ जीती। वे तीन बार गंगा तैरकर पार किया करते थे।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अखाड़े/व्यायामशालाएँ (हिंदी) काशीकथा। अभिगमन तिथि: 15 जनवरी, 2014।

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