वाग्देवी

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वाग्देवी ज्ञान की देवी माँ सरस्वती का ही एक अन्य नाम है। ब्राह्मण-ग्रंथों के अनुसार ब्रह्मस्वरूपा, कामधेनु तथा समस्त देवों की प्रतिनिधि हैं। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार ये ही विद्या, बुद्धि और ज्ञान की देवी मानी जाती हैं। अमित तेजस्वनी व अनंत गुणशालिनी देवी सरस्वती की पूजा-आराधना के लिए माघ मास की पंचमी तिथि निर्धारित की गयी है।

आविर्भाव दिवस

बसंत पंचमी को वाग्देवी का आविर्भाव दिवस माना जाता है। अतः 'वागीश्वरी जयंती' व 'श्रीपंचमी' नाम से भी यह तिथि प्रसिद्ध है। ऋग्वेद[1] में सरस्वती देवी की असीम महिमा व प्रभाव का वर्णन है। माँ सरस्वती विद्या व ज्ञान की अधिष्ठात्री हैं। कहते हैं जिनकी जिव्हा पर सरस्वती देवी का वास होता है, वे अत्यंत ही विद्वान व कुशाग्र बुद्धि होते हैं। बहुत लोग अपना ईष्ट माँ सरस्वती को मानकर उनकी पूजा-आराधना करते हैं। जिन पर सरस्वती की कृपा होती है, वे ज्ञानी और विद्या के धनी होते हैं। बसंत पंचमी का दिन सरस्वती जी की साधना को ही अर्पित है। शास्त्रों में भगवती सरस्वती की आराधना व्यक्तिगत रूप में करने का विधान है, किंतु आजकल सार्वजनिक पूजा-पाण्डालों में देवी सरस्वती की मूर्ति स्थापित कर पूजा करने का विधान चल निकला है।

पुराण उल्लेख

विष्णुधर्मोत्तरपुराण में भी वाग्देवी को चार भुजा युक्त व आभूषणों से सुसज्जित दर्शाया गया है। स्कंदपुराण में सरस्वती जटा-जुटयुक्त, अर्धचन्द्र मस्तक पर धारण किए, कमलासन पर सुशोभित, नील ग्रीवा वाली एवं तीन नेत्रों वाली कही गई हैं। रूप मंडन में वाग्देवी का शांत, सौभ्य व शास्त्रोक्त वर्णन मिलता है। संपूर्ण संस्कृति की देवी के रूप में दूध के समान श्वेत रंग वाली सरस्वती के रूप को अधिक महत्त्वपूर्ण माना गया है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ऋग्वेद- 10/125 सूक्त

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