मंदाकिनी नदी

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मंदाकिनी नदी उत्तराखण्ड राज्य के केदारनाथ के निकट से गुजरती हुई अलकनंदा नदी की सहायक नदी है। वाल्मीकि रामायण अयोध्याकांड में इसका कई स्थानों पर उल्लेख है-

'अयं गिरिश्चित्रकूटस्तथा मंदाकिनी नदी, एकत प्रकाशते दूरान्नीलमेघनिभंवनम्'; 'अथ शैलाद्विनिष्कम्य मैथिलीं कोशलेश्वर:, अदर्शयच्छुभजलां रम्यां मंदाकिनी नदीम्। विचित्र पुलिनां रम्यां हंससारससेविताम् कुसुमैरुपसंपन्नां पश्य मंदाकिनीं नदीम्। नानाविधैस्तीररुहैर्वुतां पुष्पफलमद्रुमै: राजंती राजराजस्य नलिनीमिव सर्वत:। क्वचिन् मणिनिकाशोदां क्वचित् पुलिनशालिनीम्, क्वचित्सिद्धजनाकीर्ण पश्य मंदाकिनी नदीम्। दर्शनं चित्रकूटस्य मदांकिन्याश्च शोभने अधिक पुरवासाच्च मन्ये तव च दर्शनात्। सखोवच्च विगाहस्व सोते मदांकिनींनदीम् कमलान्यवमज्जंती पुष्कराणि च भामिनि'।[1]

श्रीमद्भागवत[2] में मदांकिनी का नामोल्लेख इस प्रकार है-

'कौशिकी मंदाकिनी यमुना.......'।

कालिदास ने रघुवंश[3] में मंदाकिनी का विमानारूढ़ राम से (चित्रकूट के निकट) कितना ह्रदयग्राही वर्णन करवाया है-

'एषा प्रसन्नस्तिमितप्रवाहा सरिद विदूरांतरभावतंवी, मंदाकिनी भाति नगोपकंठे मुक्तावली कंठगतैव भूमे:'।

अध्यात्मरामायण अयोध्या[4] में मंदाकिनी को गंगा कहा गया है-

'ऊचुरग्रे गिरे: पश्चाद गंगाया उत्तरतटे विविक्तं रामसदनं रम्यं काननमंडित'।

तुलसीदास जी ने (रामचरितमानस, अयोध्या कांड) में मंदाकिनी को सुरसरि की धारा कहा है-

'सुरसरि धार नाम मंदाकिनी जो सब पातक-पोतक डाकिनी'।

उन्होंने मंदाकिनी के संबंध में प्रसिद्ध पौराणिक कथा का भी निर्देश किया है जिसमें इस नदी को अविऋषि की पत्नी अनसूया द्वारा चित्रकूट में लाए जाने का वर्णन है-

'नदी पुनीत पुरान बखानी, अत्रिप्रिया निज तपबल आनी'।

मंदाकिनी और पयास्विनी नदियों के संगम पर राघवप्रयाग नामक स्थान हैं।

अर्थ

मंदाकिनी शब्द का अर्थ 'मंद-मंद बहने वाली' है। इसके इस विशिष्टि गुण का वर्णन कालिदास ने उपर्युक्त श्लोक में 'स्तिमित प्रवाहा' कह कर किया है।


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