जावर उदयपुर

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जावर उदयपुर ज़िला, राजस्थान में प्राचीन काल में मेवाड़ का छोटा-सा वन्य क्षेत्र था, जहाँ महाराजा लाखा के समय में (14वीं शती ई.) भीलों का आधिपत्य था। महाराणा ने जावर को भीलों से छीन लिया। इस प्रदेश में लोहा, चांदी, सीसा, तथा अन्य धातुओं की खानें थीं, जिनको प्राप्त कर लाखा जी को बहुत लाभ हुआ। मेवाड़ के व्यापार की इससे बहुत उन्नति हुई थी और राजकोष भी बहुत धनी हो गया।

इतिहास

महाराणा लाखा ने अपनी संपत्ति को मेवाड़ के प्राचीन स्मारकों और मंदिरों आदि के जीर्णोद्वार में लगाया तथा अनेक नये भवन तथा दुर्ग बनवाए। इन्हें अलाउद्दीन खिलजी ने 1303 ई. के आक्रमण के समय नष्ट-भ्रष्ट कर दिया था। राजकुमारी रमाबाई महाराणा कुंभा की पुत्री थीं, जिसका विवाह गिरनार (जूनागढ़, काठियावाड़) के राजा मंडीक चतुर्थ के साथ हुआ था। अपने पति से अनबन हो जाने पर वह अपने भाई महाराणा रायमल के समय गिरनार से वापस आकर जावर में बस गई, जहाँ उन्होंने 'रमाकुण्ड' नाम का एक विशाल जलाशय खुदवाया। 'रामस्वामी' नामक एक सुन्दर विष्णु मंदिर उन्होंने उसी के तट पर बनवाया। मंदिर की दीवार पर लगे शिलालेख से ज्ञात होता है कि सन 1497 (विक्रम संवत1554) में इसका निर्माण कराया गया था। महाराणा रायमल का राजतिलक जावर में ही हुआ था।

पर्यटन

जावर उदयपुर के ख़ूबसूरत शहरों में गिना जाता है और उदयपुर पर्यटन का सबसे आकर्षक स्थल माना जाता है। नया जावर क्षेत्र वर्तमान में एक छोटे से कस्बे के रूप में है, जहाँ अधिकांश जनसंख्या अब भी भीलों की है। 'जावर माता' नामक देवी का मंदिर जावर में स्थित है। यहाँ पर इसके अलावा कई जैन, शिव तथा विष्णु के मंदिर भी स्थित हैं।


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