लोलार्क कुण्ड, वाराणसी

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[[चित्र:Lolaark-kund.jpeg|thumb|लोलार्क कुण्ड, वाराणसी]] लोलार्क कुण्ड उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी नगर में स्थित है। वर्तमान समय में स्थिति यह है कि अधिकांश कुण्ड मानव आवश्यकता की बलि चढ़ गये और इन्हें पाटकर उँची-उँची इमारतों और आलीशान कालोनियों ने अपना अस्तित्व कायम कर लिया है। इसके बावजूद काशी की धर्म प्राण जनता के लिये आज भी उसका महत्व बरकरार है। इन कुण्डों पर समय विशेष पर मेले लगते हैं और श्रद्धालु वहाँ जाकर अपनी मनोकामना की पूर्ति के लिये पूजन-अर्चन करते हैं। यह कुण्ड भदैनी मुहल्ले में है। यहाँ भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को एक विशाल मेला लगता है। लोलार्क छठ के नाम से प्रचलित है। भदैनी क्षेत्र में स्थित प्रसिद्ध राम मंदिर के बगल में स्थित लोलार्क कुण्ड लोलार्क छठ के नाम से भी जाना जाता है। कुण्ड की अनेक मान्यताओं में यह भी शामिल है कि इसमें स्नान करने से बांझ (संतानोत्पत्ति में असमर्थ) महिलाओं को भी संतानोत्पत्ति होती है और चर्म रोगियों को लाभ मिलता है। शास्त्रकारों के अनुसार अकबर और जहांगीर के युग में इस कुण्ड को वाराणसी का नेत्र माना जाता था। ऐसी कल्पना की जाती है कि उस युग में यहाँ लोलार्क नाम का एक मुहल्ला भी था। पुरातत्वविदों के अनुसार यहाँ स्थित मंदिर का उल्लेख गाहड़वाल ताम्रपत्रों में मिलता है। बावड़ी का मुंह दोहरा है, एक में पानी इकट्ठा होकर दो कुओं में जाता है। यह कुएं पत्थर के बने हैं और उन पर जगत बना हुआ है। दोनों जगतों के मध्य प्रदक्षिणा पथ है जिसे कहा जाता है कि अहिल्याबाई, अमृतराव तथा कूच विहार के महाराजा ने बनवाया था। इस कुण्ड के एक ताखे पर भगवान सूर्य का प्रतीक चक्र बना हुआ है।)

पुरातत्वविदों का यह मानना है कि इस स्थान पर कई वर्षों पूर्व आकाश से भयानक आवाज करते हुये एक उल्का पिंड गिरा था। आग की लपटों में घिरी उल्का ऐसा भान करा रही थी कि मानों सूर्य पिंड ही पृथ्वी पर गिरा रहा है। उल्का पिंड के पृथ्वी पर गिरने के कारण ही लोलार्क-कुण्ड का निर्माण हुआ था।

बहरहाल कुण्ड के अस्तित्व में आने के कारण कुछ भी हो, लोगों का इस सम्बन्ध में जो भी तर्क हो किन्तु वर्तमान समय में यह लोगों के आस्था और विश्वास का केन्द्र है। मान्यताओं के अनुसार गंगा के सीधे सम्पर्क में होने से गंगा स्नान का महत्व है। लोलार्क षष्ठी के दिन स्नान से पुत्र प्राप्ति सम्भव और शादी के बाद भी लोग यहाँ पूजन-दर्शन करने आते हैं। इसका उल्लेख-स्कन्द पुराण के काशी खण्ड में, शिवरहस्य, सूर्य पुराण में और काशी दर्शन में विस्तार से है।

खेद है कि प्रचलित लोलार्क कुण्ड धीरे-धीरे बर्बादी के कगार पर जा रहा है। अपने तरह का अनोखा दिखने वाला कुण्ड चारों ओर से घरों से घिर गया है। इससे जाने अनजाने में भी लोगों के घरों का कचरा कुण्ड में आता है। कुण्ड के नीचे स्नान करने के लिये बनी सीढ़ियों की दीवारों पर लगे पत्थर परत-दर परत उखड़ रहे हैं। चारों ओर से घिरी दीवारों का भी यही हाल है। कई दशक पुराने इस कुण्ड की दशा अत्यन्त दयनीय है, कुण्ड को घेरने के लिये बनी बाउन्डरी की ईटें भी कमज़ोर पड़ गयी हैं।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कुंड व तालाब (हिंदी) काशी कथा। अभिगमन तिथि: 11 जनवरी, 2014।

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