पुनि नभ सर मम कर

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पुनि नभ सर मम कर
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक 'रामचरितमानस'
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि।
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली दोहा, चौपाई और सोरठा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड लंकाकाण्ड
दोहा

पुनि नभ सर मम कर निकर कमलन्हि पर करि बास।
सोभत भयउ मराल इव संभु सहित कैलास॥ 22(ख)॥

भावार्थ

फिर (तूने सुना ही होगा कि) आकाशरूपी तालाब में मेरी भुजाओं रूपी कमलों पर बसकर शिव सहित कैलास हंस के समान शोभा को प्राप्त हुआ था!॥ 22(ख)॥



left|30px|link=जनि जल्पसि जड़ जंतु|पीछे जाएँ पुनि नभ सर मम कर right|30px|link=तुम्हरे कटक माझ सुनु अंगद|आगे जाएँ


दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।


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