भरद्वाज सुनु जाहि

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भरद्वाज सुनु जाहि
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
भाषा अवधी भाषा
शैली सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड बालकाण्ड
दोहा

भरद्वाज सुनु जाहि जब होई बिधाता बाम।
धूरि मेरुसम जनक जम ताहि ब्यालसम दाम॥ 175॥

भावार्थ-

(याज्ञवल्क्य कहते हैं -) हे भरद्वाज! सुनो, विधाता जब जिसके विपरीत होते हैं, तब उसके लिए धूल सुमेरु पर्वत के समान (भारी और कुचल डालनेवाली), पिता यम के समान (कालरूप) और रस्सी साँप के समान (काट खानेवाली) हो जाती है॥ 175॥


left|30px|link=सत्यकेतु कुल कोउ नहिं बाँचा|पीछे जाएँ भरद्वाज सुनु जाहि right|30px|link=काल पाइ मुनि सुनु सोइ राजा|आगे जाएँ

दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।


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