अगुन अमान जानि तेहि

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अगुन अमान जानि तेहि
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक 'रामचरितमानस'
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि।
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली दोहा, चौपाई और सोरठा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड लंकाकाण्ड
दोहा

अगुन अमान जानि तेहि दीन्ह पिता बनबास।
सो दुःख अरु जुबती बिरह पुनि निसि दिन मम त्रास॥ 31(क)॥

भावार्थ

उसे गुणहीन और मानहीन समझकर ही तो पिता ने वनवास दे दिया। उसे एक तो वह (उसका) दुःख, उस पर युवती स्त्री का विरह और फिर रात-दिन मेरा डर बना रहता है॥ 31(क)॥


left|30px|link=रे कपि अधम मरन अब चहसी|पीछे जाएँ अगुन अमान जानि तेहि right|30px|link=जिन्ह के बल कर गर्ब तोहि|आगे जाएँ


दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।


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