सो मैं तुम्ह सन कहउँ

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रामचरितमानस प्रथम सोपान (बालकाण्ड) : मनु-शतरूपा का तप

सो मैं तुम्ह सन कहउँ
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
भाषा अवधी भाषा
शैली सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड बालकाण्ड
सोरठा

सो मैं तुम्ह सन कहउँ सबु सुनु मुनीस मन लाइ।
रामकथा कलि मल हरनि मंगल करनि सुहाइ॥ 141॥

भावार्थ-

हे मुनीश्वर भरद्वाज! मैं वह सब तुमसे कहता हूँ, मन लगाकर सुनो। राम की कथा कलियुग के पापों को हरने वाली, कल्याण करने वाली और बड़ी सुंदर है॥ 141॥


left|30px|link=भरद्वाज सुनि संकर बानी|पीछे जाएँ सो मैं तुम्ह सन कहउँ right|30px|link=स्वायंभू मनु अरु सतरूपा|आगे जाएँ

सोरठा-मात्रिक छंद है और यह 'दोहा' का ठीक उल्टा होता है। इसके विषम चरणों (प्रथम और तृतीय) में 11-11 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 13-13 मात्राएँ होती हैं। विषम चरणों के अंत में एक गुरु और एक लघु मात्रा का होना आवश्यक होता है।


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