आरती सिंह राव

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आरती सिंह राव
पूरा नाम आरती सिंह राव
जन्म 3 जुलाई, 1979
अभिभावक पिता- राव इन्द्रजीत सिंह, दादा- दादा बीरेन्द्र सिंह[1]
कर्म भूमि भारत
खेल-क्षेत्र निशानेबाज़ी
शिक्षा बी.ए.
विद्यालय दिल्ली विश्वविद्यालय
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी आरती राव के पिता राव इन्द्रजीत सिंह तीन बार निशानेबाज़ी के राष्ट्रीय चैम्पियन रहे हैं।
अद्यतन‎

आरती सिंह राव (अंग्रेज़ी: Arti Singh Rao, जन्म- 3 जुलाई, 1979) भारतीय निशानेबाज़ हैं। वह केन्द्रीय मंत्री राव इन्द्रजीत सिंह की पुत्री हैं। उनके दादा बीरेन्द्र सिंह हरियाणा के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। आरती राव ने 15वीं बार निशानेबाज़ी का राष्ट्रीय खिताब अपने नाम किया है।

परिचय

आरती राव का जन्म 3 जुलाई, 1979 के दिन हुआ था। उनके पति हिम्मत सिंह एक बिजनेसमैन हैं। केंद्रीय मंत्री राव इन्द्रजीत सिंह आरती राव के पिता हैं, यही नहीं उनके दादा बीरेन्द्र सिंह भी हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे हैं। अपनी शिक्षा के अंतर्गत आरती राव ने दिल्ली विश्वविद्यालय से बी.ए. किया है। आरती राव के पिता तीन बार निशानेबाज़ी के राष्ट्रीय चैम्पियन रहे हैं।

निशानेबाज़ी

आरती राव ने भारत के निशानेबाज़ मनशेर सिंह के सामने 14 बार राष्ट्रीय चैंपियन बनने के उनके रिकॉर्ड को तोड़ा। फाइनल शूटआउट में आरती ने तेलंगाना की रश्मि राठौर को हराया। रश्मि दूसरे और छत्तीसगढ़ की सानिया शेख नंबर तीन पर रहीं। क्वालिफाइंग में आरती राव 62 अंक के साथ छठे नंबर पर थीं, जबकि रश्मि दूसरे नंबर पर।

राजनीति और खेल के माहौल में पली बढ़ी आरती राव जब 5 साल की थीं, तब एक दिन घर में खेलने के दौरान जोर से धमाका हुआ। छोटी बच्ची के लिए मानो आसमान फट गया हो। वह डर कर मम्मी से लिपट गई। मम्मी मुस्कुराईं और बोलीं, डरने की बात नहीं है। तुम्हारे पापा शूटिंग की प्रैक्टिस कर रहे हैं। वे उसे बाहर ले गईं। घर के बाहर बागीचे में जब भी बंदूक से गोली चलती, आरती राव के डर से हाथ-पांव कांपने लगते। आँखें बंद हो जातीं। वह दोनों कानों पर हाथ रख लेती। मम्मी से बार-बार खुद को घर के भीतर ले जाने जिद की। तीन बार नेशनल चैंपियन रह चुके उसके पापा राव इन्द्रजीत सिंह को यह बात नागवार गुजरी। बेटी को पुचकार कर उस दिन उन्होंने उसे वहां से भेज दिया।

आरती का डर खत्म करने के लिए पिता उसे अगले दिन से प्रैक्टिस पर ले जाने लगे। वह दूर से ही पिता को निशाना साधते देखती। गोली की आवाज से डर लगता तो पेड़ के पीछे छिप जाती। पिता के समझाने पर धीरे-धीरे विश्वास जागने लगा और डर खत्म होने लगा। एक दिन उसकी उम्र से कुछ बड़े लड़के बंदूक हाथ में लिए मैदान में प्रैक्टिस करने आए। आरती ने सोचा, ये यहां क्या कर रहे हैं। उसे लगा जब ये बंदूक चला सकते हैं तो मैं क्यों नहीं? उसने पापा से पूछा, क्या मैं भी बंदूक चला सकती हूं? उसके इतना कहने पर पापा ने उसे बदूंक थमा दी और कहा, डरो नहीं इससे लक्ष्य साधना सीखो।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भूतपूर्व मुख्यमंत्री, हरियाणा

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