समानांतर -रामधारी सिंह दिनकर

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समानांतर -रामधारी सिंह दिनकर
कवि रामधारी सिंह दिनकर
मूल शीर्षक 'समानांतर'
प्रकाशक लोकभारती प्रकाशन
प्रकाशन तिथि 1 जनवरी, 2008
ISBN 978-81-8031-335
देश भारत
भाषा हिंदी
विधा कविता संग्रह
मुखपृष्ठ रचना सजिल्द
टिप्पणी 'समानांतर' रामधारी सिंह 'दिनकर' द्वारा अनुदित विश्व-काव्य की श्रेष्ठ कृतियों का संकलन है।

समानांतर हिन्दी के प्रसिद्ध लेखक, कवि और युगदृष्ठा रामधारी सिंह 'दिनकर' द्वारा अनुदित विश्व-काव्य की श्रेष्ठ कृतियों का संकलन है। इस पुस्तक में एक तरफ़ जहाँ पुर्तग़ाली, स्पेनिश, अंग्रेज़ी, जर्मन, फ्रेंच, अमरीकी, चीनी, पोलिश एवं भारतीय भाषाओं में मलयालम की अछूती भावभूमि और नवीन भंगिमाओं वाली कविताएँ मिलती हैं तो दूसरी तरफ़ डी.एच. लारेंस की वे कविताएँ भी जो यूरोप और अमरीका में बहुत लोकप्रिय नहीं हो सकीं, लेकिन जिनका राष्ट्रकवि दिनकर जी ने चयन ही नहीं, बल्कि सरल भाषा-शैली में हिन्दी में अनुवाद भी किया और जो भारतीय चेतना के आसपास चक्कर काटती हैं।

भूमिका- 'सीपी और शंख

'समानांतर' अनूदित होते हुए भी नितान्त मौलिक होने वाली कालजयी कविताओं का अनूठा संकलन है, जो निश्चित ही पाठकों को पसंद आने की सामर्थ्य रखता है। एक मजेदार क़िस्सा सुनाते हुए दिनकरजी कहते हैं कि "कई वर्ष पहले की बात है, एक बार, शौक में आकर, मैंने कुछ विदेशी कविताओं के अनुवाद कर डाले और, जैसी मेरी आदत है, मूल के जो बिम्ब, विचार या मुहावरे हिन्दी में नहीं खप सकते थे, उन्हें छोड़कर मैंने उन्हीं के जोड़ के नए बिम्ब, विचार या मुहावरे हिन्दी में गढ़ दिए। नतीजा यह हुआ कि अनेक मित्रों ने कहा, ‘सीपी और शंख’ की कविताएँ अनुवाद नहीं, हिन्दी की मौलिक रचनाएँ हैं। मगर, क़िस्सा यहीं खत्म नहीं होता। बात यह है कि इधर दो-एक साल से रूस में मेरी कविताओं के रूसी अनुवाद तैयार करने की कुछ थोड़ी कोशिश की जा रही है। मास्को से रूसी भाषा में साहित्य की एक त्रैमासिक पत्रिका निकलती है, जिसमें विदेशी भाषाओं के अनुवाद छापे जाते हैं।[1]

पिछले साल रूस से एक विदुषी महिला मेरे साहित्य पर शोध करने को भारत पधारी। उन्होंने उक्त त्रैमासिक का वह अंक मुझे दिखाया, जिसमें मेरी दस कविताओं के रूसी अनुवाद छपे थे। मैंने श्रीमती स्वेतलाना से कहा कि रूसी अनुवाद का अर्थ आप मुझे समझा दीजिए, जिससे मैं समझ सकूँ कि आपके कवियों ने मेरी कौन-कौन कविताएँ अनुवाद के लिए चुनी हैं। स्वेतलाना जी ने सभी कविताओं का अर्थ मुझे समझाया, लेकिन यह देखकर मैं चकित रह गया कि मेरी दस कविताओं में से चार पाँच- वे थीं जो ‘सीपी और शंख’ में संग्रहीत हैं। मैंने श्रीमती स्वेतलाना से कहा कि ‘सीपी और शंख’ तो खुद’ अनूदित रचनाओं का संग्रह है, फिर आप लोगों ने उस संग्रह में से कविताएँ क्यों चुनीं? वे बोलीं, हम लोग जानते हैं कि ‘सीपी और शंख’ की कविताएँ अनुदित रचनाएँ हैं और कौन कविता किस कवि की कविता पर से बनी है, इसकी सूची भी ‘सीपी और शंख’ से ली हुई कविताओं को मूल अंग्रेज़ी, फ्रेंच, जर्मन, स्पेनिश या चीनी कविताओं से मिलाकर देखा भी। मगर उनकी राय यह हुई कि ‘सीपी और शंख’ की कविताएँ मूल से केवल प्रेरणा लेकर चली हैं, बाकी वे सब-की-सब, दिनकरजी की अपनी कल्पना से तैयार हुई हैं। इसलिए हम अगर उन्हें मौलिक रचनाएँ मानकर चलें तो इसमें कोई दोष नहीं है। इस तरह, उन्होंने ‘सीपी और शंख’ की भी कई रचनाओं को मौलिक कृतियाँ मानकर रूसी में उनका अनुवाद कर डाला और ये अनुवाद काफ़ी पसंद भी किए गए हैं।

कविता

झील

मत छुओ इस झील को।
कंकड़ी मारो नहीं,
पत्तियाँ डारो नहीं,
फूल मत बोरो।
और कागज की तरी इसमें नहीं छोड़ो।
खेल में तुमको पुलक-उन्मेष होता है,
लहर बनने में सलिल को क्लेश होता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. समानांतर (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 12 अक्टूबर, 2013।

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