गुरमेल सिंह

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[[चित्र:Gurmail-Singh.jpg|thumb|250px|पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से ध्यानचंद पुरस्कार प्राप्त करते गुरमेल सिंह]] गुरमेल सिंह (अंग्रेज़ी: Gurmail Singh) भारत के जानेमाने हॉकी खिलाड़ी रहे हैं। उनकी उपलब्धियों तथा हॉकी के क्षेत्र में दिये गये योगदान के लिये उन्हें साल 2014 में 'ध्यानचंद पुरस्कार' से सम्मानित किया गया था।

  • ओलिंपियन गुरमेल सिंह के पिता आर्मी मैन गुरदयाल सिंह की ख्वाहिश थी कि उनका सबसे छोटा बेटा देश के लिए हॉकी खेले। इस इच्छा को उन्होंने अपने बड़े बेटे प्रीतम सिंह से शेयर किया था। उस समय प्रीतम सिंह नेवी की हॉकी टीम के कोच थे। यकृत की बीमारी से पीड़ित चल रहे हॉकी प्लेयर पिता गुरदयाल सिंह की मौत उस समय हुई जब गुरमेल सिंह मात्र छह साल के थे।
  • पिता ने उन्हें चार साल की उम्र में ही छोटी हॉकी लाकर दे दी थी। उस हॉकी से वह गांव के छोटे बच्चों के साथ खेलते थे। बड़े होने लगे तो उन्होंने स्कूल लेवल पर हॉकी खेलनी शुरू कर दी।
  • जालंधर में सरदार गुरचरन सिंह बोधी और मंजीत सिंह समुंदरी ने उन्हें शुरुआती दिनों में ट्रेनिंग दी। गुरमेल सिंह बताते हैं कि मेरी हॉकी में सबसे अधिक निखार तब आया जब मैं तलवंडी साबो पहुंचा। वहां मेरे बड़े भाई के क्लासमेट कोच धर्मवीर सिंह एकेडमी चला रहे थे। वहां पर मेरी गेम में रेगुलेरिटी आ गई। सुबह उठना फिर प्रैक्टिस करना, स्कूल जाना और शाम को लौटने पर फिर प्रैक्टिस करना। यह शेड्यूल एक साल तक चलता रहा। इसके बाद उनकी गेम निखर गई। घर की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी।
  • चार भाइयों में बड़े भाई ही कमाने वाले थे। एक साल बाद जब वहां से लौटे तो कैंट के खालसा कालेज में दाखिला लिया। स्कूल स्तर पर खेलते रहे।
  • 1975 में जूनियर नेशनल टीम में चयन हो गया। टीम को यूरोप भेजा गया। वहां पर मैंने पेनल्टी से कई गोल किए। वहां से लौटने के बाद 1976 में मैंने बीएसएफ में सब इंस्पेक्टर ज्वाइन कर लिया। लेकिन वहां खेलने का मौका ही नहीं दिया जाता था। बार-बार कोशिश करने के बाद भी मैदान से बाहर रखा जाता था। खेलने को नहीं मिला तो रिजाइन कर दिया।
  • सन 1978 में पंजाब पुलिस में कांस्टेबल ज्वाइन कर लिया। दो महीने पर हेड कांस्टेबल बन गया।
  • 1979 में सीनियर टीम में चयन हो गया। चैम्पियन ट्रॉफी खेलने कराची गया।


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