Difference between revisions of "द्वारावती"

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
 
Line 1: Line 1:
'''द्वारावती''' अथवा 'द्वारवती' एक प्राचीन नगरी थी, जो [[द्वारका]] से कुछ ही दूरी पर स्थित थी।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=460|url=}}</ref>
+
'''द्वारावती''' अथवा 'द्वारवती' [[गुजरात]] की एक प्राचीन नगरी थी, जो [[द्वारका]] से कुछ ही दूरी पर स्थित थी।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=460|url=}}</ref>
  
 
*जैन 'तीर्थमालाचैत्यवंदन' में द्वारावती का [[जैन धर्म]] के [[तीर्थ]] के रूप में उल्लेख है-
 
*जैन 'तीर्थमालाचैत्यवंदन' में द्वारावती का [[जैन धर्म]] के [[तीर्थ]] के रूप में उल्लेख है-
Line 5: Line 5:
 
*द्वारावती को [[जैन]] [[तीर्थंकर]] [[नेमिनाथ तीर्थंकर|नेमिनाथ]] से संबंधित बताया गया है।
 
*द्वारावती को [[जैन]] [[तीर्थंकर]] [[नेमिनाथ तीर्थंकर|नेमिनाथ]] से संबंधित बताया गया है।
 
*जैन पौराणिक कथाओं के अनुसार नेमिनाथ [[श्रीकृष्ण]] के समकालीन और उनके संबंधी भी थे।
 
*जैन पौराणिक कथाओं के अनुसार नेमिनाथ [[श्रीकृष्ण]] के समकालीन और उनके संबंधी भी थे।
 +
*[[जरासंध]] के उपद्रव से डरकर [[कृष्ण]] द्वारावती आ गए थे।
 +
*आजकल के [[पोरबंदर]] से 15 कोस दक्षिण समुद्र में द्वारावती का स्थान बताया जाता है। कुछ लोग इसे ‘[[कुशस्थली]]’ भी कहते हैं।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=पौराणिक कोश|लेखक=राणा प्रसाद शर्मा|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=557, परिशिष्ट 'क'|url=}}</ref>
 +
  
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}

Latest revision as of 07:09, 22 May 2018

dvaravati athava 'dvaravati' gujarat ki ek prachin nagari thi, jo dvaraka se kuchh hi doori par sthit thi.[1]

  • jain 'tirthamalachaityavandan' mean dvaravati ka jain dharm ke tirth ke roop mean ullekh hai-

'dvaravaty paresh gadhamadhagirau shrijirnavapre tatha'.


panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

tika tippani aur sandarbh

  1. aitihasik sthanavali |lekhak: vijayendr kumar mathur |prakashak: rajasthan hindi granth akadami, jayapur |prishth sankhya: 460 |
  2. pauranik kosh |lekhak: rana prasad sharma |prakashak: jnanamandal limited, varanasi |sankalan: bharat diskavari pustakalay |prishth sankhya: 557, parishisht 'k' |

sanbandhit lekh