Difference between revisions of "बरनावा"

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'''बरनावा''' [[मेरठ ज़िला]], [[उत्तर प्रदेश]] में स्थित है। यहीं पर [[पांडव क़िला]] भी है, जिसमें अनेक प्राचीन मूर्तियाँ देखी जा सकती हैं।
 
'''बरनावा''' [[मेरठ ज़िला]], [[उत्तर प्रदेश]] में स्थित है। यहीं पर [[पांडव क़िला]] भी है, जिसमें अनेक प्राचीन मूर्तियाँ देखी जा सकती हैं।
  
*बरनावा हिंडोन और [[कृष्णा नदी]] के संगम पर, सरधना तहसील में, मेरठ से लगभग 15 मील की दूरी पर स्थित है।
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*बरनावा [[हिंडोन नदी|हिंडोन]] और [[कृष्णा नदी]] के संगम पर, सरधना तहसील में, मेरठ से लगभग 15 मील की दूरी पर स्थित है।
 
*जनश्रुति के अनुसार यह माना जाता है कि यह वही ग्राम है, जहाँ [[पांडव|पांडवों]] को भस्म कर देने के लिए [[दुर्योधन]] ने [[लाक्षागृह]] तैयार करवाया था।
 
*जनश्रुति के अनुसार यह माना जाता है कि यह वही ग्राम है, जहाँ [[पांडव|पांडवों]] को भस्म कर देने के लिए [[दुर्योधन]] ने [[लाक्षागृह]] तैयार करवाया था।
 
*यह प्राचीन ग्राम 'वारणावत' या 'वारणावर्त' है, जो उन पांच ग्रामों में से था, जिनकी मांग पांडवों ने दुर्योधन से [[महाभारत]] युद्ध के पूर्व की थी।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=609|url=}}</ref>
 
*यह प्राचीन ग्राम 'वारणावत' या 'वारणावर्त' है, जो उन पांच ग्रामों में से था, जिनकी मांग पांडवों ने दुर्योधन से [[महाभारत]] युद्ध के पूर्व की थी।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=609|url=}}</ref>

Revision as of 04:37, 5 September 2012

baranava merath zila, uttar pradesh mean sthit hai. yahian par paandav qila bhi hai, jisamean anek prachin moortiyaan dekhi ja sakati haian.

  • baranava hiandon aur krishnaa nadi ke sangam par, saradhana tahasil mean, merath se lagabhag 15 mil ki doori par sthit hai.
  • janashruti ke anusar yah mana jata hai ki yah vahi gram hai, jahaan paandavoan ko bhasm kar dene ke lie duryodhan ne lakshagrih taiyar karavaya tha.
  • yah prachin gram 'varanavat' ya 'varanavart' hai, jo un paanch gramoan mean se tha, jinaki maang paandavoan ne duryodhan se mahabharat yuddh ke poorv ki thi.[1]


panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

tika tippani aur sandarbh

  1. aitihasik sthanavali |lekhak: vijayendr kumar mathur |prakashak: rajasthan hindi granth akadami, jayapur |prishth sankhya: 609 |

sanbandhit lekh