एम. करुणानिधि

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एम. करुणानिधि
पूरा नाम मुथूवेल करुणानिधि
जन्म 3 जून, 1924
जन्म भूमि तिरुक्कुवलई, मद्रास प्रैज़िडन्सी
मृत्यु 7 अगस्त, 2018
मृत्यु स्थान चेन्नई, तमिलनाडु
अभिभावक पिता- मुत्तुवेल, माता- अंजुगम
पति/पत्नी तीन- पद्मावती अम्माल, दयालु अम्मा, राजाथिअम्माल
संतान पुत्र- एम.के. मुथू, एम.के. अलागिरि, एम.के. स्टालिन, एम.के. तमिलारसु; पुत्री- एम. के. सेल्वी, एम. के. कनिमोझी
नागरिकता भारतीय
प्रसिद्धि राजनीतिज्ञ, नाटककार और पटकथा लेखक
पार्टी द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (डीएमके)
पद तमिलनाडु के मुख्यमंत्री (5 बार)
कार्य काल 13 मई, 200615 मई, 2011

13 मई, 1996 – 13 मई, 2001
27 जनवरी, 198930 जनवरी, 1991
15 मार्च, 197131 जनवरी, 1976
10 फ़रवरी, 19694 जनवरी, 1971

अन्य जानकारी तमिल साहित्य में अपने योगदान के लिए भी एम. करुणानिधि मशहूर हैं। उनके योगदान में कविताएं, चिट्ठियां, पटकथाएं, उपन्यास, जीवनी, ऐतिहासिक उपन्यास, मंच नाटक, संवाद, गाने इत्यादि शामिल हैं।

मुथूवेल करुणानिधि (अंग्रेज़ी: Muthuvel Karunanidhi, जन्म- 3 जून, 1924, तिरुक्कुवलई; मृत्यु- 7 अगस्त, 2018, चेन्नई) भारतीय राजनेता और तमिलनाडु के पूर्व मुख्यमंत्री थे। वे तमिलनाडु के द्रविड़ राजनीतिक दल 'द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम' (डीएमके) के प्रमुख थे। एम. करुणानिधि को 1969 में डीएमके के संस्थापक सी. एन. अन्नादुराई की मौत के बाद तमिलनाडु का मुख्यमंत्री बना दिया गया था। वे पांच बार (1969-71, 1971-76, 1989-91, 1996-2001, 2006-2011) तक तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे। एम. करुणानिधि ने अपने 60 साल के राजनीतिक कॅरिअर में अपनी भागीदारी वाले हर किसी चुनाव में अपनी सीट जीतने का रिकॉर्ड बनाया। 2004 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने तमिलनाडु और पुदुचेरी में डीएमके के नेतृत्व वाली डीपीए का नेतृत्व किया और लोकसभा की 40 सीटों को जीत लिया। इसके बाद उन्होंने 2009 के लोकसभा चुनाव में डीएमके के जरिये जीती गई सीटों की संख्या 16 से बढ़ाकर 18 कर दी। तमिलनाडु और पुदुचेरी में यूपीए का नेतृत्व कर बहुत छोटे से गठबंधन के बाबजूद उन्होंने वहाँ पर 28 सीटों पर जीत प्राप्त की थी। एम. करुणानिधि तमिल सिनेमा जगत के एक नाटककार और पटकथा लेखक भी थे। उनके समर्थक उन्हें "कलाईनार" कहकर बुलाते थे।

जन्म

एम. करुणानिधि का जन्म औपनिवेशिक कालीन भारत में 3 जून, 1924 को नागपट्टिनम के तिरुक्कुवलई में दक्षिणमूर्ति के रूप में हुआ था। उनके पिता का नाम मुत्तुवेल था और माता अंजुगम थीं। वे ईसाई धर्म के वेल्लालर समुदाय से संबंध रखते थे।

आरम्भिक जीवन

एम. करुणानिधि ने अपने जीवन की शुरुआत तमिल फिल्म उद्योग में एक पटकथा लेखक के रूप में की। अपनी बुद्धि और भाषण के माध्यम से वे बहुत काम समय में एक महान राजनेता बन गए। एम. करुणानिधि द्रविड़ आंदोलन से जुड़े थे और समाजवादी और बुद्ध के आदर्शों को बढ़ाबा देने वाली ऐतिहासिक और सामाजिक कहानियाँ लिखने के लिए मशहूर थे। उन्होंने तमिल सिनेमा जगत का इस्तेमाल करके अपनी 'पराशक्ति' नामक फिल्म के माध्यम से अपने राजनीतिक विचारों का प्रचार किया। 'पराशक्ति' फिल्म तमिल सिनेमा जगत के लिए एक महत्तपूर्ण मोड़ साबित हुई, क्यूकि इसने द्रविड़ आंदोलन की विचारधाराओं का समर्थन किया और इसने तमिल फिल्म जगत के दो मशहूर अभिनेताओं शिवाजी गणेशन और एस.एस. राजेंद्रन से दुनिया को परिचित करवाया। शुरू में इस फिल्म पर प्रतिबन्द लगा दिया गया था, लेकिन बाद में इसे सन 1952 में रिलीज कर दिया गया। ये बॉक्स ऑफिस पर बहुत ही बड़ी फिल्म के रूप में साबित हुई। इसी तरह करुणानिधि की दो और फिल्में थीं- 'पनाम' और 'थंगारथनम'। सन 1950 के दशक में उनके दो नाटकों को भी प्रतिबंधित कर दिया गया था।

विवाह

एम. करुणानिधि ने तीन विवाह किये थे। उनकी पहली पत्नी का नाम पद्मावती अम्माल था, जिनसे उन्हें एक बेटा हुआ, जिसका नाम एम.के. मुथू है। पद्मावती का निधन मुथु के जन्म के आसपास ही हो गया था। इसके बाद उनकी शादी दयालु अम्मा से हुई, जिनसे इस दम्पत्ति को चार बच्चे हुए- एम.के. अलागिरि, एम.के. स्टालिन, एम.के. तमिलारसु और सेल्वी। उनकी तीसरी पत्नी का नाम राजाथिअम्माल हैं, जिनसे उन्हें एक बेटी कनिमोझी हैं।

राजनीति में प्रवेश

जस्टिस पार्टी के अलगिरिस्वामी के एक भाषण से प्रेरित होकर एम. करुणानिधि ने 14 साल की उम्र में राजनीति में प्रवेश किया और हिंदी विरोधी आंदोलन में भाग लिया। उन्होंने अपने इलाके के स्थानीय युवाओं के लिए एक संगठन की स्थापना की। उन्होंने इसके सदस्यों को 'मनावर नेसन' नामक एक हस्तलिखित अखबार परिचालित किया। बाद में उन्होंने 'तमिलनाडु तमिल मनावर मंद्रम' नामक एक छात्र संगठन की स्थापना की, जो द्रविड़ आन्दोलन का पहला छात्र विंग था। करुणानिधि ने अन्य सदस्यों के साथ छात्र समुदाय और खुद को भी सामाजिक कार्य में शामिल कर लिया। यहां उन्होंने इसके सदस्यों के लिए एक अखबार चालू किया, जो डीएमके दल के आधिकारिक अखबार मुरासोली के रूप में सामने आया।

कल्लाकुडी में हिंदी विरोधी विरोध प्रदर्शन में उनकी भागीदारी, तमिल राजनीति में अपनी जड़ मजबूत करने में करुणानिधि के लिए मददगार साबित होने वाला पहला प्रमुख कदम था। इस औद्योगिक नगर को उस समय उत्तर भारत के एक शक्तिशाली मुग़ल के नाम पर 'डालमियापुरम' कहा जाता था। विरोध प्रदर्शन में एम. करुणानिधि और उनके साथियों ने रेलवे स्टेशन से हिंदी नाम को मिटा दिया और रेलगाड़ियों के मार्ग को अवरुद्ध करने के लिए पटरी पर लेट गए। इस विरोध प्रदर्शन में दो लोगों की मौत हो गई और करुणानिधि को गिरफ्तार कर लिया गया।

सत्ता प्राप्ति

एम. करुणानिधि को तिरुचिरापल्ली ज़िले के कुलिथालाई विधानसभा से 1957 में तमिलनाडु विधानसभा के लिए पहली बार चुना गया। वे 1961 में डीएमके कोषाध्यक्ष बने और 1962 में राज्य विधानसभा में विपक्ष के उपनेता बने और 1967 में जब डीएमके सत्ता में आई, तब वे सार्वजनिक कार्य मंत्री बने। जब 1969 में सी. एन. अन्नादुराई की मौत हो गई, तब करुणानिधि को तमिलनाडु का मुख्यमंत्री बना दिया गया। तमिलनाडु में राजनीतिक क्षेत्र में अपने लंबे कॅरियर के दौरान वे पार्टी और सरकार में विभिन्न पदों पर रह चुके थे। मई, 2006 के चुनाव में अपने गठबंधन द्वारा अपने प्रमुख प्रतिद्वंद्वी जयललिता के हारने के बाद उन्होंने 13 मई, 2006 को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री का पदभार संभाला। तमिलनाडु विधानसभा में उन्हें 11 बार और अब समाप्त हो चुके 'तमिलानडु विधान परिषद' में एक बार निर्वाचित किया गया था।

काले चश्मे से पहचान

एम. करुणानिधि अपनी वक्तव्य शैली और राजनीति पर दमदार पकड़ के चलते तमिलनाडु के लोगों के दिलों पर राज करते थे। उनकी लिखी फिल्मों की वजह से पहले ही लोग उन्हें स्टार मानते थे। राजनीति में आने के बाद उन्होंने अपने इस स्टार स्टेटस को और मजबूत किया। एक और चीज जिसने उनकी इस छवि को प्रभावी बनाया, वह था उनका स्टाइल। किसी फिल्म स्टार की तरह वे हमेशा काला चश्मा और कंधे पर पीला गमछा पहनकर निकलते थे। दरअसल 1968-1969 में एक हादसे में उनकी बाई आंख क्षतिग्रस्त हो गई थी। तभी से उन्होंने काला चश्मा पहनना शुरू किया, जो उनका स्टाइल बन गया। लोगों ने उनकी देखा-देखी ऐसे ही चश्मे पहनने शुरू कर दिए। पार्टी के नेताओं के मुताबिक़ करुणानिधि अपने स्टाइल को लेकर बहुत सतर्क रहते थे। वह रोज शेव करते थे और कभी भी पीत गमछा डालना नहीं भूलते थे। नवंबर 2017 में डॉक्टर की सलाह पर उन्होंने अपने 46 वर्ष पुराने स्टाइल को अलविदा कहकर नया चश्मा पहनना शुरू किया था। उनके लिए देश भर में 40 दिन तक सही चश्मे की खोज की गई थी, आखिरकार चश्मा जर्मनी से खरीदा गया।[1]

करुणानिधि और इंदिरा

जब 1976 में इंदिरा गांधी ने करुणानिधि की सरकार को बर्खास्त किया, वे इंदिरा के खिलाफ बहुत उग्र हो गए। लेकिन इसके बावजूद, जब जनता पार्टी सरकार केंद्र में धराशायी हो गई और लगने लगा कि इंदिरा फिर सत्ता पर काबिज़ हो जाएंगीं तो करुणानिधि ने इंदिरा से फिर हाथ मिला लिया। 1980 के लोकसभा चुनाव में एआईडीएमके को तमिलनाडु में मुंह की खानी पड़ी। लोकसभा में एआईडीएमके की हार को आधार बनाकर करुणानिधि ने इंदिरा गांधी से कहकर एआईडीएमके की सरकार गिरवा दी, लेकिन इस बात से नाराज़ लोगों का कहर करुणानिधि पर ही टूटा और जनता ने तमिलनाडु में एक बार फिर एम. जी. रामचन्द्रन को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया। उनकी कुटिल चालों के ही चलते एमजीआर ने उन्हें ‘अशुभ ताकत’ का नाम दे डाला था और ये नाम करुणानिधि के नाम साथ ऐसा चिपका कि ताउम्र छूटा नहीं और लोगों के मन में बैठ गया।

सन 1971 से 1976 तक के उनके मुख्यमंत्रित्व काल पर जो काला धब्बा लगा, उसे 'सरकारिया कमीशन' ने ‘वैज्ञानिक तरीके से किए गए भ्रष्टाचार’ की संज्ञा दे डाली। अब ये दूसरी बात है कि करुणानिधि के समय जो भ्रष्टाचार लाखों का था, एमजीआर के समय वह करोड़ों का हो गया और जयललिता के वक्त तो वह अरबों का हो गया। लेकिन तमिलनाडु की जनता ने एमजीआर के भ्रष्टाचार माफ कर दिए, क्योंकि उनकी छवि एक मशहूर और लोगों के भले के लिए काम करने वाले नेता की थी। जयललिता का भ्रष्टाचार उनके कॅरियर के अंत में सामने आया, जब बेंगलुरु की एक विशेष अदालत ने उन्हें भ्रष्टाचार का दोषी माना था, लेकिन करुणानिधि के माथे से भ्रष्टाचार का कलंक मिट नहीं पाया।[2]

साहित्य

तमिल साहित्य में अपने योगदान के लिए भी एम. करुणानिधि मशहूर हैं। उनके योगदान में कविताएं, चिट्ठियां, पटकथाएं, उपन्यास, जीवनी, ऐतिहासिक उपन्यास, मंच नाटक, संवाद, गाने इत्यादि शामिल हैं। उन्होंने तिरुक्कुरल, थोल्काप्पिया पूंगा, पूम्बुकर के लिए कुरालोवियम के साथ-साथ कई कविताएं, निबंध और किताबें लिखी हैं। साहित्य के अलावा करुणानिधि ने कला एवं स्थापत्य कला के माध्यम से तमिल भाषा में भी योगदान दिया है। कुरालोवियम की तरह, जिसमें कलाईनार ने तिरुक्कुरल के बारे में लिखा था, वल्लुवर कोट्टम के निर्माण के माध्यम से उन्होंने तिरुवल्लुवर, चेन्नई, तमिलनाडु में अपनी स्थापत्य उपस्थिति का परिचय दिया है। कन्याकुमारी में एम. करुणानिधि ने तिरुवल्लुवर की एक 133 फुट ऊंची मूर्ति का निर्माण करवाया था, जो उस विद्वान के प्रति उनकी भावनाओं का चित्रण करता है।

पुस्तकें

एम. करुणानिधि द्वारा लिखित पुस्तकों में शामिल हैं- रोमपुरी पांडियन, तेनपांडि सिंगम, वेल्लीकिलमई, नेंजुकू नीदि, इनियावई इरुपद, संग तमिल, कुरालोवियम, पोन्नर शंकर और तिरुक्कुरल उरई। उनकी गद्य और पद्य की प्स्तकों की संख्या 100 से भी अधिक है।

मंचकला

करुणानिधि के नाटकों में शामिल हैं- मनिमागुडम, ओरे रदम, पालानीअप्पन, तुक्कु मेडइ, कागिदप्पू, नाने एरिवाली, वेल्लिक्किलमई, उद्यासूरियन और सिलप्पदिकारम आदि।

पटकथाएँ

एम. करुणानिधि ने 20 वर्ष की आयु में ज्यूपिटर पिक्चर्स के लिए पटकथा लेखक के रूप में कार्य शुरू किया था। उन्होंने अपनी पहली फिल्म 'राजकुमारी' से लोकप्रियता हासिल की। पटकथा लेखक के रूप में उनके हुनर में यहीं से निखार आना शुरू हुआ। उनके द्वारा लिखी गई 75 पटकथाओं में शामिल हैं- राजकुमारी, अभिमन्यु, मंदिरी कुमारी, मरुद नाट्टू इलवरसी, मनामगन, देवकी, पराशक्ति, पनम, तिरुम्बिपार, नाम, मनोहरा, अम्मियापन, मलाई कल्लन, रंगून राधा, राजा रानी, पुदैयाल, पुदुमइ पित्तन, एल्लोरुम इन्नाट्टु मन्नर, कुरावांजी, ताइलापिल्लई, कांची तलैवन, पूम्बुहार, पूमालई, मनी मगुड्म, मारक्क मुडियुमा?, अवन पित्तना?, पूक्कारी, निदिक्कु दंडानई, पालईवना रोजाक्कल, पासा परावाईकल, पाड़ाद थेनीक्कल, नियाय तरासु, पासाकिलिग्ल, कन्नम्मा, यूलियिन ओसई, पेन सिन्गम और इलइज्ञइन।

पुरस्कार और खिताब

  1. एम. करुणानिधि को कभी-कभी प्यार से "कलाईनार" और "मुथामिझ कविनार" भी कहा जाता है।
  2. अन्नामलई विश्वविद्यालय ने 1971 में उन्हें मानद डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया था।
  3. 'थेनपंदी सिंगम' नामक किताब के लिए उन्हें तमिल विश्वविद्यालय, तंजावुर द्वारा "राजा राजन पुरस्कार" से सम्मानित किया गया था।
  4. 15 दिसम्बर, 2006 को तमिलनाडु के राज्यपाल और मदुराई कामराज विश्वविद्यालय के चांसलर महामहिम थिरु सुरजीत सिंह बरनाला ने 40वें वार्षिक समारोह के अवसर पर उनको मानद डॉक्टरेट की उपाधि से विभूषित किया था।
  5. जून 2007 में तमिलनाडु मुस्लिम मक्कल काची ने घोषणा की थी कि वह एम. करूणानिधि को 'मुस्लिम समुदाय के दोस्त' (यारां-ए-मिल्लाथ') प्रदान करेगा।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. राजनीति पर दमदार पकड़ रखने वाले करुणानिधि के काले चश्मे का राज (हिंदी) jagran.com। अभिगमन तिथि: 08 अगस्त, 2018।
  2. करुणानिधि का 78 साल का राजनीतिक सफर (हिंदी) hindi.firstpost। अभिगमन तिथि: 08 अगस्त, 2018।

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