देखहु रामहि नयन भरि

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
देखहु रामहि नयन भरि
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
भाषा अवधी भाषा
शैली सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड बालकाण्ड
दोहा

देखहु रामहि नयन भरि तजि इरिषा मदु कोहु।।
लखन रोषु पावकु प्रबल जानि सलभ जनि होहु॥ 266॥

भावार्थ-

ईर्ष्या, घमंड और क्रोध छोड़कर नेत्र भरकर राम (की छवि) को देख लो। लक्ष्मण के क्रोध को प्रबल अग्नि जानकर उसमें पतंगे मत बनो॥ 266॥


left|30px|link=बलु प्रतापु बीरता बड़ाई|पीछे जाएँ देखहु रामहि नयन भरि right|30px|link=बैनतेय बलि जिमि चह कागू|आगे जाएँ

दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः