परम पुनीत न जाइ
परम पुनीत न जाइ
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
भाषा | अवधी भाषा |
शैली | सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | बालकाण्ड |
परम पुनीत न जाइ तजि किएँ प्रेम बड़ पापु। |
- भावार्थ-
सती परम पवित्र हैं, इसलिए इन्हें छोड़ते भी नहीं बनता और प्रेम करने में बड़ा पाप है। प्रकट करके महादेव कुछ भी नहीं कहते, परंतु उनके हृदय में बड़ा संताप है॥ 56॥
left|30px|link=सतीं कीन्ह सीता कर बेषा|पीछे जाएँ | परम पुनीत न जाइ | right|30px|link=तब संकर प्रभु पद सिरु नावा|आगे जाएँ |
दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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