पूरब दिसा बिलोकि प्रभु

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पूरब दिसा बिलोकि प्रभु
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक 'रामचरितमानस'
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि।
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली दोहा, चौपाई और सोरठा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड लंकाकाण्ड
दोहा

पूरब दिसा बिलोकि प्रभु देखा उदित मयंक।
कहत सबहि देखहु ससिहि मृगपति सरिस असंक॥ 11(ख)॥

भावार्थ

पूर्व दिशा की ओर देखकर प्रभु राम ने चंद्रमा को उदय हुआ देखा। तब वे सबसे कहने लगे - चंद्रमा को तो देखो। कैसा सिंह के समान निडर है!॥ 11(ख)॥



left|30px|link=ऐहि बिधि कृपा रूप गुन|पीछे जाएँ पूरब दिसा बिलोकि प्रभु right|30px|link=पूरब दिसि गिरिगुहा निवासी|आगे जाएँ


दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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