प्रथमहिं मैं कहि सिव

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प्रथमहिं मैं कहि सिव
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
भाषा अवधी भाषा
शैली सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड बालकाण्ड
दोहा

प्रथमहिं मैं कहि सिव चरित बूझा मरमु तुम्हार।
सुचि सेवक तुम्ह राम के रहित समस्त बिकार॥ 104॥

भावार्थ-

मैंने पहले ही शिव का चरित्र कहकर तुम्हारा भेद समझ लिया। तुम राम के पवित्र सेवक हो और समस्त दोषों से रहित हो॥ 104॥


left|30px|link=सिव सम को रघुपति ब्रतधारी|पीछे जाएँ प्रथमहिं मैं कहि सिव right|30px|link=मैं जाना तुम्हार गुन सीला|आगे जाएँ

दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।


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