श्राप सीस धरि हरषि
श्राप सीस धरि हरषि
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
भाषा | अवधी भाषा |
शैली | सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | बालकाण्ड |
श्राप सीस धरि हरषि हियँ प्रभु बहु बिनती कीन्हि॥ |
- भावार्थ-
शाप को सिर पर चढ़ाकर, हृदय में हर्षित होते हुए प्रभु ने नारद से बहुत विनती की और कृपानिधान भगवान ने अपनी माया की प्रबलता खींच ली॥ 137॥
left|30px|link=कपि आकृति तुम्ह कीन्हि हमारी|पीछे जाएँ | श्राप सीस धरि हरषि | right|30px|link=जब हरि माया दूरि निवारी|आगे जाएँ |
दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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