संकर उर अति छोभु
संकर उर अति छोभु
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
भाषा | अवधी भाषा |
शैली | सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | बालकाण्ड |
संकर उर अति छोभु सती न जानहिं मरमु सोइ। |
- भावार्थ-
शंकर के हृदय में इस बात को लेकर बड़ी खलबली उत्पन्न हो गई, परंतु सती इस भेद को नहीं जानती थीं। तुलसीदास कहते हैं कि शिव के मन में डर था, परंतु दर्शन के लोभ से उनके नेत्र ललचा रहे थे॥ 48(ख)॥
left|30px|link=हृदयँ बिचारत जात|पीछे जाएँ | संकर उर अति छोभु | right|30px|link=रावन मरन मनुज कर जाचा|आगे जाएँ |
सोरठा मात्रिक छंद है और यह 'दोहा' का ठीक उल्टा होता है। इसके विषम चरणों (प्रथम और तृतीय) में 11-11 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 13-13 मात्राएँ होती हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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