सिय शोभा हियँ बरनि

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सिय शोभा हियँ बरनि
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
भाषा अवधी भाषा
शैली सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड बालकाण्ड
दोहा

सिय शोभा हियँ बरनि प्रभु आपनि दसा बिचारि॥
बोले सुचि मन अनुज सन बचन समय अनुहारि॥ 230॥

भावार्थ-

(इस प्रकार) हृदय में सीता की शोभा का वर्णन करके और अपनी दशा को विचारकर प्रभु राम पवित्र मन से अपने छोटे भाई लक्ष्मण से समयानुकूल वचन बोले - ॥ 230॥


left|30px|link=सुंदरता कहुँ सुंदर करई|पीछे जाएँ सिय शोभा हियँ बरनि right|30px|link=तात जनकतनया यह सोई|आगे जाएँ

दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।


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