सुनि प्रभु बचन बिलोकि

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सुनि प्रभु बचन बिलोकि
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली चौपाई, दोहा, छंद और सोरठा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड सुन्दरकाण्ड
समुद्रपर कोप
दोहा

सुनि प्रभु बचन बिलोकि मुख गात हरषि हनुमंत।
चरन परेउ प्रेमाकुल त्राहि त्राहि भगवंत॥32॥

भावार्थ

प्रभु के वचन सुनकर और उनके (प्रसन्न) मुख तथा (पुलकित) अंगों को देखकर हनुमान जी हर्षित हो गए और प्रेम में विकल होकर 'हे भगवन! मेरी रक्षा करो, रक्षा करो' कहते हुए श्री राम जी के चरणों में गिर पड़े॥32॥



left|30px|link=सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहीं|पीछे जाएँ सुनि प्रभु बचन बिलोकि right|30px|link=बार बार प्रभु चहइ उठावा|आगे जाएँ


दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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