सुनि प्रभु बचन हरष हनुमाना
सुनि प्रभु बचन हरष हनुमाना
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई, दोहा, छंद और सोरठा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | सुन्दरकाण्ड |
सुनि प्रभु बचन हरष हनुमाना। सरनागत बच्छल भगवाना॥5॥ |
- भावार्थ
प्रभु के वचन सुनकर हनुमान जी हर्षित हुए (और मन ही मन कहने लगे कि) भगवान कैसे शरणागतवत्सल (शरण में आए हुए पर पिता की भाँति प्रेम करने वाले) हैं॥5॥
left|30px|link=भेद हमार लेन सठ आवा|पीछे जाएँ | सुनि प्रभु बचन हरष हनुमाना | right|30px|link=सरनागत कहुँ जे तजहिं|आगे जाएँ |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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