लॉर्ड एलगिन द्वितीय: Difference between revisions
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लॉर्ड एलगिन द्वितीय अपने [[पिता]] की भाँति इसके पूर्व किसी महत्त्वपूर्ण पद पर नहीं रहा और न ही उसमें कोई विशेष योग्यता थी। इसके अलावा उसका भाग्य भी ख़राब था। उसी के कार्यकाल में [[1896]] ई. में [[मुम्बई|बंबई]] में [[प्लेग]] की बीमारी फैली और 1896-97 ई. में देशव्यापी अक़ाल पड़ा। इन दोनों विपत्तियों को रोकने में अथवा जनता को राहत पहुँचाने में उसका प्रशासन सफल नहीं हो सका। नतीजा यह हुआ कि प्लेग और अक़ाल के कारण ब्रिटिश भारत में 10 लाख व्यक्ति काल के गाल में समा गए। | |||
==भारतीय जनता से कटुता== | ====भारतीय जनता से कटुता==== | ||
इसके अलावा बंबई में प्लेग फैलने से [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] के हाथ-पैर फूल गए। उन्होंने सेना की सहायता से उसे रोकने के लिए अत्यन्त कठोर क़दम उठाए। [[अंग्रेज़]] अधिकारी लोगों को घरों से निकालने के लिए जनानख़ाने तक में घुस जाते थे। इससे भारतीय जनता में बड़ी कटुता उत्पन्न हुई। फल यह हुआ कि [[पूना]] में दो अंग्रेज़, जिनमें एक सिविलियन तथा दूसरा सैनिक अधिकारी था, मार डाले गए। इस घटना ने राजनीतिक रूप ग्रहण कर लिया। | |||
==ब्रिटिश सरकार की वित्तीय नीति== | ==ब्रिटिश सरकार की वित्तीय नीति== | ||
लॉर्ड एलगिन द्वितीय के ज़माने में ही यह तथ्य भी नग्न रूप में सामने आया कि, [[भारत]] सरकार की वित्तीय नीति किस प्रकार अंग्रेज़ उद्योगपतियों के लाभ के लिए चलायी जाती है। [[1895]] ई. में बजट में संभाव्य घाटे को रोकने के लिए सभी प्रकार के आयात पर 5 प्रतिशत शुल्क लगाया गया। केवल लंकाशायर से [[भारत]] आने वाले कपड़े पर यह शुल्क नहीं लगाया गया। इस पक्षतापूर्ण नीति का भारतीयों द्वारा कठोर विरोध किया गया। फल यह हुआ कि अगले बजट में लंकाशायर से आयतित कपड़े पर भी शुल्क लगाने का निश्चय किया गया, लेकिन इसके साथ ही भारत में बने कपड़े पर भी उत्पादन शुल्क लगा दिया गया। इससे यह स्पष्ट हो गया कि ब्रिटिश सरकार भारत के कपड़ा उद्योग के विकास को पसंद नहीं करती है। | |||
==एलगिन की नीति== | ==एलगिन की नीति== | ||
लॉर्ड एलगिन द्वितीय ने 1895 ई. में गिलगिट के पश्चिम और [[हिन्दूकुश]] पर्वत के दक्षिण में स्थित चित्राल रियासत में उत्तराधिकारी के प्रश्न पर अनावश्यक रीति से हस्तक्षेप किया, जिसके फलस्वरूप उसे पश्चिमोत्तर प्रदेश में लम्बा और ख़र्चीला युद्ध चलाना पड़ा। इस युद्ध में ब्रिटिश भारतीय सशस्त्र सेना की विजय अवश्य हुई और भारत-[[अफ़ग़ान]] सीमा से लेकर चित्राल तक सैनिक यातायात के लिए सड़क का निर्माण कर दिया गया। लेकिन चित्राल के आन्तरिक मामले में [[अंग्रेज़]] सरकार के हस्तक्षेप से आसपास के मोहम्मद और आफ़रीदी क़बीलों में रोष फैल गया और उन्होंने [[1897]] ई. में अंग्रेज़ों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। लॉर्ड एलगिन द्वितीय को उस विद्रोह का दमन करने के लिए संघर्ष करना पड़ा और अंत में 35 हज़ार फ़ौज लगा देनी पड़ी, तब कहीं जाकर वे क़ाबू में आए। [[1857]] ई. के [[सिपाही क्रांति 1857|भारतीय स्वाधीनता संग्राम]] के पश्चात् [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] के लिए यह सबसे कठिन संघर्ष सिद्ध हुआ। | |||
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लॉर्ड एलगिन द्वितीय के कार्यकाल में एक महत्त्वपूर्ण सैनिक सुधार हुआ। समस्त भारतीय सेना के लिए एक प्रधान सेनापति नियुक्त किया गया और उसके अधीन [[बंगाल]], [[मद्रास]], [[बंबई]] तथा [[पंजाब]] एवं पश्चिमोत्तर प्रान्त में तैनात पलटनों को सम्भालने के लिए चार लेफ्टिनेंट जनरल नियुक्त किये गये। लॉर्ड एलगिन द्वितीय के कार्यकाल में केवल यही एक महत्त्व का सुधार हुआ। | |||
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लॉर्ड लैन्सडाउन के बाद जनवरी, 1894 ई. में लॉर्ड एलगिन द्वितीय भारत का वाइसराय बना। लॉर्ड एलगिन द्वितीय ने भारत के विषय में कहा था कि, "भारत को तलवार के बल पर विजित किया गया है, और तलवार के बल पर ही इसकी रक्षा की जायेगी"। इसके शासन काल में 1895 ई. से 1898 ई. तक मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार तथा पंजाब में भयंकर अकाल पड़ा। एलगिन द्वितीय ने 'सर जेम्स लायल' की अध्यक्षता में एक 'अकाल आयोग' की नियुक्त की थी। एलगिन द्वितीय के समय में 'चितराल' व 'अफ़रीदियों' की समस्या उभरी। 1895 ई. में चितराल शासक की हत्या कर दी गई, तत्पश्चात् उत्तराधिकार के लिए लड़ाई आरम्भ हो गई। कालान्तर में ब्रिटिश सेना ने हस्तक्षेप कर चितराल को अपने क़ब्ज़े में कर लिया। कबायलियों ने असन्तुष्ठ होकर ख़ैबर दर्रे को बन्द कर दिया। जून, 1897 ई. में एक बार फिर कबायलियों से झड़प हुई और अन्तत: अफ़रीदियों ने पूर्ण आत्म-समर्पण कर दिया।
भाग्य रहित व्यक्ति
लॉर्ड एलगिन द्वितीय अपने पिता की भाँति इसके पूर्व किसी महत्त्वपूर्ण पद पर नहीं रहा और न ही उसमें कोई विशेष योग्यता थी। इसके अलावा उसका भाग्य भी ख़राब था। उसी के कार्यकाल में 1896 ई. में बंबई में प्लेग की बीमारी फैली और 1896-97 ई. में देशव्यापी अक़ाल पड़ा। इन दोनों विपत्तियों को रोकने में अथवा जनता को राहत पहुँचाने में उसका प्रशासन सफल नहीं हो सका। नतीजा यह हुआ कि प्लेग और अक़ाल के कारण ब्रिटिश भारत में 10 लाख व्यक्ति काल के गाल में समा गए।
भारतीय जनता से कटुता
इसके अलावा बंबई में प्लेग फैलने से अंग्रेज़ों के हाथ-पैर फूल गए। उन्होंने सेना की सहायता से उसे रोकने के लिए अत्यन्त कठोर क़दम उठाए। अंग्रेज़ अधिकारी लोगों को घरों से निकालने के लिए जनानख़ाने तक में घुस जाते थे। इससे भारतीय जनता में बड़ी कटुता उत्पन्न हुई। फल यह हुआ कि पूना में दो अंग्रेज़, जिनमें एक सिविलियन तथा दूसरा सैनिक अधिकारी था, मार डाले गए। इस घटना ने राजनीतिक रूप ग्रहण कर लिया।
ब्रिटिश सरकार की वित्तीय नीति
लॉर्ड एलगिन द्वितीय के ज़माने में ही यह तथ्य भी नग्न रूप में सामने आया कि, भारत सरकार की वित्तीय नीति किस प्रकार अंग्रेज़ उद्योगपतियों के लाभ के लिए चलायी जाती है। 1895 ई. में बजट में संभाव्य घाटे को रोकने के लिए सभी प्रकार के आयात पर 5 प्रतिशत शुल्क लगाया गया। केवल लंकाशायर से भारत आने वाले कपड़े पर यह शुल्क नहीं लगाया गया। इस पक्षतापूर्ण नीति का भारतीयों द्वारा कठोर विरोध किया गया। फल यह हुआ कि अगले बजट में लंकाशायर से आयतित कपड़े पर भी शुल्क लगाने का निश्चय किया गया, लेकिन इसके साथ ही भारत में बने कपड़े पर भी उत्पादन शुल्क लगा दिया गया। इससे यह स्पष्ट हो गया कि ब्रिटिश सरकार भारत के कपड़ा उद्योग के विकास को पसंद नहीं करती है।
एलगिन की नीति
लॉर्ड एलगिन द्वितीय ने 1895 ई. में गिलगिट के पश्चिम और हिन्दूकुश पर्वत के दक्षिण में स्थित चित्राल रियासत में उत्तराधिकारी के प्रश्न पर अनावश्यक रीति से हस्तक्षेप किया, जिसके फलस्वरूप उसे पश्चिमोत्तर प्रदेश में लम्बा और ख़र्चीला युद्ध चलाना पड़ा। इस युद्ध में ब्रिटिश भारतीय सशस्त्र सेना की विजय अवश्य हुई और भारत-अफ़ग़ान सीमा से लेकर चित्राल तक सैनिक यातायात के लिए सड़क का निर्माण कर दिया गया। लेकिन चित्राल के आन्तरिक मामले में अंग्रेज़ सरकार के हस्तक्षेप से आसपास के मोहम्मद और आफ़रीदी क़बीलों में रोष फैल गया और उन्होंने 1897 ई. में अंग्रेज़ों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। लॉर्ड एलगिन द्वितीय को उस विद्रोह का दमन करने के लिए संघर्ष करना पड़ा और अंत में 35 हज़ार फ़ौज लगा देनी पड़ी, तब कहीं जाकर वे क़ाबू में आए। 1857 ई. के भारतीय स्वाधीनता संग्राम के पश्चात् अंग्रेज़ों के लिए यह सबसे कठिन संघर्ष सिद्ध हुआ।
सैनिक सुधार
लॉर्ड एलगिन द्वितीय के कार्यकाल में एक महत्त्वपूर्ण सैनिक सुधार हुआ। समस्त भारतीय सेना के लिए एक प्रधान सेनापति नियुक्त किया गया और उसके अधीन बंगाल, मद्रास, बंबई तथा पंजाब एवं पश्चिमोत्तर प्रान्त में तैनात पलटनों को सम्भालने के लिए चार लेफ्टिनेंट जनरल नियुक्त किये गये। लॉर्ड एलगिन द्वितीय के कार्यकाल में केवल यही एक महत्त्व का सुधार हुआ।
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