भांगड़ा नृत्य: Difference between revisions
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भांगड़ा एक जीवंत लोक संगीत व [[लोक नृत्य]] है जो [[पंजाब]] से शुरू हुआ है। बैसाखी के समय फ़सल कटाई का अनुष्ठान करते समय लोग परंपरागत रूप से भांगड़ा करते हैं। भांगड़ा के दौरान लोग [[पंजाबी भाषा|पंजाबी बोली]] के गीत गाते हैं तथा लुंगी व पगड़ी बांधे लोगों के घेरे में एक व्यक्ति ढोल बजाता है। जबकि भांगड़ा की | भांगड़ा एक जीवंत लोक संगीत व [[लोक नृत्य]] है जो [[पंजाब]] से शुरू हुआ है। बैसाखी के समय फ़सल कटाई का अनुष्ठान करते समय लोग परंपरागत रूप से भांगड़ा करते हैं। भांगड़ा के दौरान लोग [[पंजाबी भाषा|पंजाबी बोली]] के गीत गाते हैं तथा लुंगी व पगड़ी बांधे लोगों के घेरे में एक व्यक्ति ढोल बजाता है। जबकि भांगड़ा की शुरुआत फ़सल कटाई के उत्सव के रूप में हुई, परन्तु आगे चलकर यह विवाह तथा नववर्ष समारोहों का भी अंग बन गया। पिछले 30 वर्षों के दौरान भांगड़ा के लोकप्रियता में विश्व भर में वृद्धि हुई है। पंजाब में महिलाओं द्वारा किया जाने वाला नृत्य गिद्दा कहलाता है। यह एक खुशनुमा नृत्य है, जिसमें एक गोले में बोलियाँ गाई जाती हैं तथा तालियाँ बजाई जाती हैं। दो प्रतिभागी घेरे से निकलकर समर्पण भाव से सस्वर बोली सुनाती हैं व अभिनय करती हैं जब कि शेष समूह में गाती हैं। यह पुनरावृत्ति 3-4 बार होती है। प्रत्येक बार दूसरी टोली होती है, जो एक नई बोली से शुरुआत करती है। इसके अलावा नृत्य व [[कला]] के और भी बहुत प्रकार हैं जैसे कि झूमर, [[लुड्डी]], जुली, डानकारा, धमाल, सामी, किकली, और गटका। | ||
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[[चित्र:Bhangra.jpg|thumb|भांगड़ा नृत्य, पंजाब
Bhangra Dance, Punjab]]
भांगड़ा एक जीवंत लोक संगीत व लोक नृत्य है जो पंजाब से शुरू हुआ है। बैसाखी के समय फ़सल कटाई का अनुष्ठान करते समय लोग परंपरागत रूप से भांगड़ा करते हैं। भांगड़ा के दौरान लोग पंजाबी बोली के गीत गाते हैं तथा लुंगी व पगड़ी बांधे लोगों के घेरे में एक व्यक्ति ढोल बजाता है। जबकि भांगड़ा की शुरुआत फ़सल कटाई के उत्सव के रूप में हुई, परन्तु आगे चलकर यह विवाह तथा नववर्ष समारोहों का भी अंग बन गया। पिछले 30 वर्षों के दौरान भांगड़ा के लोकप्रियता में विश्व भर में वृद्धि हुई है। पंजाब में महिलाओं द्वारा किया जाने वाला नृत्य गिद्दा कहलाता है। यह एक खुशनुमा नृत्य है, जिसमें एक गोले में बोलियाँ गाई जाती हैं तथा तालियाँ बजाई जाती हैं। दो प्रतिभागी घेरे से निकलकर समर्पण भाव से सस्वर बोली सुनाती हैं व अभिनय करती हैं जब कि शेष समूह में गाती हैं। यह पुनरावृत्ति 3-4 बार होती है। प्रत्येक बार दूसरी टोली होती है, जो एक नई बोली से शुरुआत करती है। इसके अलावा नृत्य व कला के और भी बहुत प्रकार हैं जैसे कि झूमर, लुड्डी, जुली, डानकारा, धमाल, सामी, किकली, और गटका।
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