प्रभाचन्द्र: Difference between revisions
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''' | '''प्रभाचन्द्र''' [[जैन साहित्य]] में तर्कग्रन्थकार के रूप में सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं। इनके निश्चित समय काल के बारे कुछ विद्वानों में मतभेद हैं। आचार्य [[माणिक्यनन्दि]] के शिष्य और उन्हीं के परीक्षामुख पर विशालकाय एवं विस्तृत व्याख्या 'प्रमेयकमलमार्त्तण्ड' लिखने वाले ये अद्वितीय मनीषी हैं। इन्होंने [[अकलंकदेव]] के दुरूह 'लघीयस्त्रय' नाम के न्याय [[ग्रन्थ]] पर भी बहुत ही विशद और विस्तृत टीका लिखी है, जिसका नाम 'न्यायकुमुदचन्द्र' है। | ||
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प्रभाचन्द्र का उल्लेख [[दक्षिण भारत]] के [[श्रवणबेलगोला मैसूर|श्रवण बेलगोला]] शिलालेखों में हुआ है। इनका कार्यक्षेत्र [[उत्तर भारत]] में धारा नगरी थी। चतुर्भुज का नाम भी इनके गुरु के रूप में आता है। इनके समय काल के बारे में तीन मान्यताएँ हैं- 'ई. आठवीं शताब्दी', 'ई. ग्यारहवीं शताब्दी' और 'ई. 1065'। | |||
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प्रमेयकमलमार्तण्ड, (परीक्षामुख व्याख्या), न्यायकुमुदचंद्र (लघीयस्त्रय व्याख्या), तत्त्वार्थवृत्ति पद विवरण (सर्वार्थसिद्धि व्याख्या), शाकटायनन्यास (शाकटायन व्याकरण व्याख्या), शब्दाम्भोजभास्कर (जैनेन्द्र व्याकरण व्याख्या), प्रवचनसार, सरोज भास्कर (प्रवचनसार व्याख्या), गधकथाकोष (स्वतंत्र रचना), रत्नकरण्डश्रावकाचार टीका, समाधितंत्र टीका, क्रियाकलाप टीका, आत्मानुशासन टीका और महापुराण टिप्पण। | |||
न्यायकुमुदचंद्र वस्तुत: न्याय रूपी कुमुदों को विकसित करने वाला चन्द्र है। इसमें प्रभाचन्द्र ने लघीयस्त्रय की कारिकाओं, उनकी स्वोपज्ञ वृत्ति और उसके दुरूह पद-वाक्यादि की विशद व्याख्या तो की ही है, किन्तु प्रसंगोपात्त विविध तार्किक चर्चाओं द्वारा अनेक अनुद्घाटित तथ्यों एवं विषयों पर भी नया प्रकाश डाला है। इसी प्रकार उन्होंने प्रमेयकमलमार्तण्ड में भी अपनी तर्कपूर्ण प्रतिभा का पूरा उपयोग किया है और परीक्षामुख के प्रत्येक सूत्र व उसके पदों का विस्तृत एवं विशद व्याख्यान किया है। प्रभाचन्द्र के ये दोनों व्याख्यान [[ग्रन्थ]] मूल जैसे ही हैं। इनके बाद इन जैसा कोई मौलिक या व्याख्याग्रन्थ नहीं लिखा गया। [[समन्तभद्र (जैन)|समन्तभद्र]], [[अकलंक]] और [[विद्यानन्द]] के बाद प्रभाचन्द्र जैसा कोई [[जैन]] तार्किक हुआ दिखाई नहीं देता। | |||
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Latest revision as of 06:15, 27 April 2012
प्रभाचन्द्र जैन साहित्य में तर्कग्रन्थकार के रूप में सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं। इनके निश्चित समय काल के बारे कुछ विद्वानों में मतभेद हैं। आचार्य माणिक्यनन्दि के शिष्य और उन्हीं के परीक्षामुख पर विशालकाय एवं विस्तृत व्याख्या 'प्रमेयकमलमार्त्तण्ड' लिखने वाले ये अद्वितीय मनीषी हैं। इन्होंने अकलंकदेव के दुरूह 'लघीयस्त्रय' नाम के न्याय ग्रन्थ पर भी बहुत ही विशद और विस्तृत टीका लिखी है, जिसका नाम 'न्यायकुमुदचन्द्र' है।
- कार्य समय
प्रभाचन्द्र का उल्लेख दक्षिण भारत के श्रवण बेलगोला शिलालेखों में हुआ है। इनका कार्यक्षेत्र उत्तर भारत में धारा नगरी थी। चतुर्भुज का नाम भी इनके गुरु के रूप में आता है। इनके समय काल के बारे में तीन मान्यताएँ हैं- 'ई. आठवीं शताब्दी', 'ई. ग्यारहवीं शताब्दी' और 'ई. 1065'।
- रचनाएँ
इनकी प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार से हैं-
प्रमेयकमलमार्तण्ड, (परीक्षामुख व्याख्या), न्यायकुमुदचंद्र (लघीयस्त्रय व्याख्या), तत्त्वार्थवृत्ति पद विवरण (सर्वार्थसिद्धि व्याख्या), शाकटायनन्यास (शाकटायन व्याकरण व्याख्या), शब्दाम्भोजभास्कर (जैनेन्द्र व्याकरण व्याख्या), प्रवचनसार, सरोज भास्कर (प्रवचनसार व्याख्या), गधकथाकोष (स्वतंत्र रचना), रत्नकरण्डश्रावकाचार टीका, समाधितंत्र टीका, क्रियाकलाप टीका, आत्मानुशासन टीका और महापुराण टिप्पण।
न्यायकुमुदचंद्र वस्तुत: न्याय रूपी कुमुदों को विकसित करने वाला चन्द्र है। इसमें प्रभाचन्द्र ने लघीयस्त्रय की कारिकाओं, उनकी स्वोपज्ञ वृत्ति और उसके दुरूह पद-वाक्यादि की विशद व्याख्या तो की ही है, किन्तु प्रसंगोपात्त विविध तार्किक चर्चाओं द्वारा अनेक अनुद्घाटित तथ्यों एवं विषयों पर भी नया प्रकाश डाला है। इसी प्रकार उन्होंने प्रमेयकमलमार्तण्ड में भी अपनी तर्कपूर्ण प्रतिभा का पूरा उपयोग किया है और परीक्षामुख के प्रत्येक सूत्र व उसके पदों का विस्तृत एवं विशद व्याख्यान किया है। प्रभाचन्द्र के ये दोनों व्याख्यान ग्रन्थ मूल जैसे ही हैं। इनके बाद इन जैसा कोई मौलिक या व्याख्याग्रन्थ नहीं लिखा गया। समन्तभद्र, अकलंक और विद्यानन्द के बाद प्रभाचन्द्र जैसा कोई जैन तार्किक हुआ दिखाई नहीं देता।
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