करम बचन मन छाड़ि: Difference between revisions

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करम बचन मन छाड़ि छलु जब लगि जनु न तुम्हार।
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तब लगि सुखु सपनेहुँ नहीं किएँ कोटि उपचार॥107॥</poem>
तब लगि सुखु सपनेहुँ नहीं किएँ कोटि उपचार॥107॥</poem>
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'''चौपाई'''- मात्रिक सम [[छन्द]] का भेद है। [[प्राकृत]] तथा [[अपभ्रंश]] के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। [[तुलसीदास|गोस्वामी तुलसीदास]] ने [[रामचरितमानस]] में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
'''दोहा''' - मात्रिक अर्द्धसम [[छंद]] है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
 
 





Latest revision as of 04:50, 18 June 2016

करम बचन मन छाड़ि
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड अयोध्या काण्ड
दोहा

करम बचन मन छाड़ि छलु जब लगि जनु न तुम्हार।
तब लगि सुखु सपनेहुँ नहीं किएँ कोटि उपचार॥107॥

भावार्थ

जब तक कर्म, वचन और मन से छल छोड़कर मनुष्य आपका दास नहीं हो जाता, तब तक करोड़ों उपाय करने से भी, स्वप्न में भी वह सुख नहीं पाता॥107॥


left|30px|link=लाभ अवधि सुख अवधि न दूजी|पीछे जाएँ करम बचन मन छाड़ि right|30px|link=सुनि मुनि बचन रामु सकुचाने|आगे जाएँ


दोहा - मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।





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