सुचि सुंदर आश्रमु: Difference between revisions
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Latest revision as of 12:45, 28 July 2016
रामचरितमानस द्वितीय सोपान (अयोध्या काण्ड) : श्रीराम-वाल्मीकि-संवाद
सुचि सुंदर आश्रमु
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अयोध्या काण्ड |
सुचि सुंदर आश्रमु निरखि हरषे राजिवनेन। |
- भावार्थ
पवित्र और सुंदर आश्रम को देखकर कमल नयन श्री रामचन्द्रजी हर्षित हुए। रघु श्रेष्ठ श्री रामजी का आगमन सुनकर मुनि वाल्मीकिजी उन्हें लेने के लिए आगे आए॥124॥
left|30px|link=सरनि सरोज बिटप बन फूले|पीछे जाएँ | सुचि सुंदर आश्रमु | right|30px|link=मुनि कहुँ राम दंडवत कीन्हा|आगे जाएँ |
दोहा - मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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