जथा मत्त गज जूथ: Difference between revisions
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रामचरितमानस षष्ठ सोपान (लंका काण्ड) : अंगद-रावण संवाद
जथा मत्त गज जूथ
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | 'रामचरितमानस' |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि। |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | दोहा, चौपाई और सोरठा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | लंकाकाण्ड |
जथा मत्त गज जूथ महुँ पंचानन चलि जाइ। |
- भावार्थ
जैसे मतवाले हाथियों के झुंड में सिंह (निःशंक होकर) चला जाता है, वैसे ही राम के प्रताप का हृदय में स्मरण करके वे (निर्भय) सभा में सिर नवाकर बैठ गए॥ 19॥
left|30px|link=गयउ सभाँ मन नेकु न मुरा|पीछे जाएँ | जथा मत्त गज जूथ | right|30px|link=कह दसकंठ कवन तैं बंदर|आगे जाएँ |
दोहा- मात्रिक अर्द्धसम छंद है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) में 13-13 मात्राएँ और सम चरणों (द्वितीय तथा चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख