गणेशरा मथुरा: Difference between revisions

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*गणेशरा [[मथुरा]] में स्थित एक गँव है।
'''गणेशरा''' [[उत्तर प्रदेश]] की प्रसिद्ध धार्मिक नगरी [[मथुरा]] में स्थित एक [[गाँव]] है। क्षहरात वंश के क्षत्रप घाटक का एक अभिलेख इस स्थान से वोगल को सन 1912 ई. में प्राप्त हुआ था,<ref>दे जर्नल ओव रायल एशियाटिक सोसायटी, 1912, पृ. 121</ref> जिससे प्रथम शती ई. के लगभग मथुरा तथा निकटवर्ती प्रदेश पर शक (सिथियन) क्षत्रपों का आधिपत्य सूचित होता है।
*क्षहरात वंश के क्षत्रप घाटक का एक अभिलेख इस स्थान से वोगल को 1912 ई. में प्राप्त हुआ था।<ref>दे जर्नल ओव रायल एशियाटिक सोसायटी, 1912, पृ0 121</ref>  
*जिससे प्रथम शती ई. के लगभग मथुरा तथा निकटवर्ती प्रदेश पर शक (सिथियन) क्षत्रपों का आधिपत्य सूचित होता है।


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*इस गाँव को पहले 'गंधेश्वरी वन' के नाम से जाना जाता था। यह स्थान [[ब्रज|ब्रजमण्डल]] के [[ऐतिहासिक स्थल|ऐतिहासिक स्थलों]] में से एक है। यह [[कृष्ण|भगवान श्रीकृष्ण]] की दिव्य लीलाओं से सम्बंधित है।
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::'यस्या: कदापि वसनाञ्चलखेलनोत्थ। धन्यातिधन्य-पवनेन कृतार्थमानी। योगीन्द्र-दुर्गमगतिर्मधुसूदनोऽपि तस्या नमोऽस्तु वृषभानुभूवो दिशेऽपि।।<ref>राधारससुधानिधि–2</ref>
 
*राधिका को देखकर श्रीकृष्ण के हाथों से उनकी [[बाँसुरी]] गिर गई। मोर मुकुट भी श्रीराधिका के चरणों में गिर गया। यहाँ तक कि वे स्वयं मूर्छित हो गये, इसलिए आज का गणेशरा पहले गन्धेश्वरी तीर्थ कहलाता था-
::वंशी करान्निपतित: स्खलितं शिखण्डं भ्रष्टञ्च पीतवसनं व्रजराजसूनो:। यस्या: कटाक्षशरघात-विमूर्च्छितस्य तां राधिकां परिचरामि कदा रसेन।।<ref>राधारससुधानिधि–39</ref>
 
*राधिका का दूसरा नाम 'गान्धर्वा' भी है। उन्हीं के नाम के अनुसार यहाँ 'गान्धर्वा कुण्ड' आज भी [[राधा|श्रीराधा]]-[[कृष्ण]] के विलास की ध्वजा फहरा रहा है।
*गन्धेश्वरी का अपभ्रंश ही वर्तमान समय में 'गणेशरा' नाम से प्रसिद्ध है।
 
 
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
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गणेशरा उत्तर प्रदेश की प्रसिद्ध धार्मिक नगरी मथुरा में स्थित एक गाँव है। क्षहरात वंश के क्षत्रप घाटक का एक अभिलेख इस स्थान से वोगल को सन 1912 ई. में प्राप्त हुआ था,[1] जिससे प्रथम शती ई. के लगभग मथुरा तथा निकटवर्ती प्रदेश पर शक (सिथियन) क्षत्रपों का आधिपत्य सूचित होता है।

  • इस गाँव को पहले 'गंधेश्वरी वन' के नाम से जाना जाता था। यह स्थान ब्रजमण्डल के ऐतिहासिक स्थलों में से एक है। यह भगवान श्रीकृष्ण की दिव्य लीलाओं से सम्बंधित है।
  • श्रीकृष्ण ने गोचारण के समय सखाओं के साथ गन्ध द्रव्यों को अपने-अपने अंगों में धारण किया था। कहते हैं कि यहाँ सहेलियों के साथ पास में ही छिपी हुई राधिका के अंगों की गन्ध से श्रीकृष्ण मोहग्रस्त हो गये थे-
'यस्या: कदापि वसनाञ्चलखेलनोत्थ। धन्यातिधन्य-पवनेन कृतार्थमानी। योगीन्द्र-दुर्गमगतिर्मधुसूदनोऽपि तस्या नमोऽस्तु वृषभानुभूवो दिशेऽपि।।[2]
  • राधिका को देखकर श्रीकृष्ण के हाथों से उनकी बाँसुरी गिर गई। मोर मुकुट भी श्रीराधिका के चरणों में गिर गया। यहाँ तक कि वे स्वयं मूर्छित हो गये, इसलिए आज का गणेशरा पहले गन्धेश्वरी तीर्थ कहलाता था-
वंशी करान्निपतित: स्खलितं शिखण्डं भ्रष्टञ्च पीतवसनं व्रजराजसूनो:। यस्या: कटाक्षशरघात-विमूर्च्छितस्य तां राधिकां परिचरामि कदा रसेन।।[3]
  • राधिका का दूसरा नाम 'गान्धर्वा' भी है। उन्हीं के नाम के अनुसार यहाँ 'गान्धर्वा कुण्ड' आज भी श्रीराधा-कृष्ण के विलास की ध्वजा फहरा रहा है।
  • गन्धेश्वरी का अपभ्रंश ही वर्तमान समय में 'गणेशरा' नाम से प्रसिद्ध है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. दे जर्नल ओव रायल एशियाटिक सोसायटी, 1912, पृ. 121
  2. राधारससुधानिधि–2
  3. राधारससुधानिधि–39

संबंधित लेख