बंदउँ संत असज्जन चरना: Difference between revisions
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बंदउँ संत असज्जन चरना। दुःखप्रद उभय बीच कछु बरना॥ | बंदउँ संत असज्जन चरना। दुःखप्रद उभय बीच कछु बरना॥ | ||
बिछुरत एक प्रान हरि लेहीं। मिलत एक | बिछुरत एक प्रान हरि लेहीं। मिलत एक दु:ख दारुन देहीं॥2॥ | ||
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Latest revision as of 14:01, 2 June 2017
बंदउँ संत असज्जन चरना
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
भाषा | अवधी भाषा |
शैली | सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | बालकाण्ड |
संत-असंत वंदना
बंदउँ संत असज्जन चरना। दुःखप्रद उभय बीच कछु बरना॥ |
- भावार्थ-
अब मैं संत और असंत दोनों के चरणों की वन्दना करता हूँ, दोनों ही दुःख देने वाले हैं, परन्तु उनमें कुछ अन्तर कहा गया है। वह अंतर यह है कि एक (संत) तो बिछुड़ते समय प्राण हर लेते हैं और दूसरे (असंत) मिलते हैं, तब दारुण दुःख देते हैं। (अर्थात् संतों का बिछुड़ना मरने के समान दुःखदायी होता है और असंतों का मिलना।)॥2॥
left|30px|link=मैं अपनी दिसि कीन्ह निहोरा|पीछे जाएँ | बंदउँ संत असज्जन चरना | right|30px|link=उपजहिं एक संग जग माहीं|आगे जाएँ |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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