कपि तव दरस सकल दुख बीते: Difference between revisions
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कपि तव दरस सकल | कपि तव दरस सकल दु:ख बीते। मिले आजुमोहि राम पिरीते॥ | ||
बार बार बूझी कुसलाता। तो कहुँ देउँ काह सुन भ्राता॥6॥ | बार बार बूझी कुसलाता। तो कहुँ देउँ काह सुन भ्राता॥6॥ | ||
Latest revision as of 14:02, 2 June 2017
कपि तव दरस सकल दुख बीते
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | उत्तरकाण्ड |
कपि तव दरस सकल दु:ख बीते। मिले आजुमोहि राम पिरीते॥ |
- भावार्थ
(भरत जी ने कहा-) हे हनुमान- तुम्हारे दर्शन से मेरे समस्त दुःख समाप्त हो गए (दुःखों का अंत हो गया)। (तुम्हारे रूप में) आज मुझे प्यारे राम जी ही मिल गए। भरत जी ने बार-बार कुशल पूछी (और कहा-) हे भाई! सुनो, (इस शुभ संवाद के बदले में) तुम्हें क्या दूँ?॥6॥
left|30px|link=दीनबंधु रघुपति कर किंकर|पीछे जाएँ | कपि तव दरस सकल दुख बीते | right|30px|link=एहि संदेस सरिस जग माहीं|आगे जाएँ |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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