कहि प्रिय बचन प्रिया समुझाई: Difference between revisions
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बेगि प्रजा | बेगि प्रजा दु:ख मेटब आई। जननी निठुर बिसरि जनि जाई॥3॥</poem> | ||
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Latest revision as of 14:03, 2 June 2017
कहि प्रिय बचन प्रिया समुझाई
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अयोध्या काण्ड |
- श्री राम-कौसल्या-सीता संवाद
कहि प्रिय बचन प्रिया समुझाई। लगे मातु पद आसिष पाई॥ |
- भावार्थ
श्री रामचन्द्रजी ने प्रिय वचन कहकर प्रियतमा सीताजी को समझाया। फिर माता के पैरों लगकर आशीर्वाद प्राप्त किया। (माता ने कहा-) बेटा! जल्दी लौटकर प्रजा के दुःख को मिटाना और यह निठुर माता तुम्हें भूल न जाए!॥3॥
left|30px|link=कहेउ कृपाल भानुकुलनाथा|पीछे जाएँ | कहि प्रिय बचन प्रिया समुझाई | right|30px|link=फिरिहि दसा बिधि बहुरि कि मोरी|आगे जाएँ |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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