चिक्करहिं दिग्गज डोल महि: Difference between revisions
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चिक्करहिं दिग्गज डोल महि गिरि लोल सागर खरभरे। | चिक्करहिं दिग्गज डोल महि गिरि लोल सागर खरभरे। | ||
मन हरष सभ गंधर्ब सुर मुनि नाग किंनर | मन हरष सभ गंधर्ब सुर मुनि नाग किंनर दु:ख टरे॥ | ||
कटकटहिं मर्कट बिकट भट बहु कोटि कोटिन्ह धावहीं। | कटकटहिं मर्कट बिकट भट बहु कोटि कोटिन्ह धावहीं। | ||
जय राम प्रबल प्रताप कोसलनाथ गुन गन गावहीं॥1॥ | जय राम प्रबल प्रताप कोसलनाथ गुन गन गावहीं॥1॥ |
Latest revision as of 14:03, 2 June 2017
चिक्करहिं दिग्गज डोल महि
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई, दोहा, छंद और सोरठा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | सुन्दरकाण्ड |
चिक्करहिं दिग्गज डोल महि गिरि लोल सागर खरभरे। |
- भावार्थ
दिशाओं के हाथी चिंग्घाड़ने लगे, पृथ्वी डोलने लगी, पर्वत चंचल हो गए (काँपने लगे) और समुद्र खलबला उठे। गंधर्व, देवता, मुनि, नाग, किन्नर सब के सब मन में हर्षित हुए' कि (अब) हमारे दुःख टल गए। अनेकों करोड़ भयानक वानर योद्धा कटकटा रहे हैं और करोड़ों ही दौड़ रहे हैं। 'प्रबल प्रताप कोसलनाथ श्री रामचंद्रजी की जय हो' ऐसा पुकारते हुए वे उनके गुणसमूहों को गा रहे हैं॥1॥
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छंद- शब्द 'चद' धातु से बना है जिसका अर्थ है 'आह्लादित करना', 'खुश करना'। यह आह्लाद वर्ण या मात्रा की नियमित संख्या के विन्याय से उत्पन्न होता है। इस प्रकार, छंद की परिभाषा होगी 'वर्णों या मात्राओं के नियमित संख्या के विन्यास से यदि आह्लाद पैदा हो, तो उसे छंद कहते हैं'। छंद का सर्वप्रथम उल्लेख 'ऋग्वेद' में मिलता है। जिस प्रकार गद्य का नियामक व्याकरण है, उसी प्रकार पद्य का छंद शास्त्र है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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