बिरहवंत भगवंतहि देखी: Difference between revisions
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बिरहवंत भगवंतहि देखी। नारद मन भा सोच बिसेषी॥ | बिरहवंत भगवंतहि देखी। नारद मन भा सोच बिसेषी॥ | ||
मोर साप करि अंगीकारा। सहत राम नाना | मोर साप करि अंगीकारा। सहत राम नाना दु:ख भारा॥3॥ | ||
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Latest revision as of 14:05, 2 June 2017
बिरहवंत भगवंतहि देखी
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अरण्यकाण्ड |
- नारद-राम संवाद
बिरहवंत भगवंतहि देखी। नारद मन भा सोच बिसेषी॥ |
- भावार्थ
भगवान को विरहयुक्त देखकर नारदजी के मन में विशेष रूप से सोच हुआ। (उन्होंने विचार किया कि) मेरे ही शाप को स्वीकार करके श्री रामजी नाना प्रकार के दुःखों का भार सह रहे हैं (दुःख उठा रहे हैं)॥3॥
left|30px|link=तहँ पुनि सकल देव मुनि आए|पीछे जाएँ | बिरहवंत भगवंतहि देखी | right|30px|link=ऐसे प्रभुहि बिलोकउँ जाई|आगे जाएँ |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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