बिप्र श्राप तें दूनउ भाई: Difference between revisions

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बिप्र श्राप तें दूनउ भाई। तामस असुर देह तिन्ह पाई॥
बिप्र श्राप तें दूनउ भाई। तामस असुर देह तिन्ह पाई॥
कनककसिपु अरु हाटकलोचन। जगत बिदित सुरपति मद मोचन॥
कनककसिपु अरु हाटकलोचन। जगत् बिदित सुरपति मद मोचन॥
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;भावार्थ-
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उन दोनों भाइयों ने ब्राह्मण (सनकादि) के शाप से असुरों का तामसी शरीर पाया। एक का नाम था हिरण्यकशिपु और दूसरे का हिरण्याक्ष। ये देवराज इंद्र के गर्व को छुड़ाने वाले सारे जगत में प्रसिद्ध हुए।
उन दोनों भाइयों ने ब्राह्मण (सनकादि) के शाप से असुरों का तामसी शरीर पाया। एक का नाम था हिरण्यकशिपु और दूसरे का हिरण्याक्ष। ये देवराज इंद्र के गर्व को छुड़ाने वाले सारे जगत् में प्रसिद्ध हुए।


{{लेख क्रम4| पिछला=जनम एक दुइ कहउँ बखानी |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=बिजई समर बीर बिख्याता}}
{{लेख क्रम4| पिछला=जनम एक दुइ कहउँ बखानी |मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला=बिजई समर बीर बिख्याता}}

Latest revision as of 14:02, 30 June 2017

बिप्र श्राप तें दूनउ भाई
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
भाषा अवधी भाषा
शैली सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड बालकाण्ड
चौपाई

बिप्र श्राप तें दूनउ भाई। तामस असुर देह तिन्ह पाई॥
कनककसिपु अरु हाटकलोचन। जगत् बिदित सुरपति मद मोचन॥

भावार्थ-

उन दोनों भाइयों ने ब्राह्मण (सनकादि) के शाप से असुरों का तामसी शरीर पाया। एक का नाम था हिरण्यकशिपु और दूसरे का हिरण्याक्ष। ये देवराज इंद्र के गर्व को छुड़ाने वाले सारे जगत् में प्रसिद्ध हुए।


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चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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