यह मत जौं मानहु प्रभु मोरा: Difference between revisions

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हे प्रभो! यदि आप मेरी यह सम्मति मानेंगे, तो जगत में दोनों ही प्रकार से आपका सुयश होगा। [[रावण]] ने गुस्से में भरकर पुत्र से कहा - अरे मूर्ख! तुझे ऐसी बुद्धि किसने सिखाई?
हे प्रभो! यदि आप मेरी यह सम्मति मानेंगे, तो जगत् में दोनों ही प्रकार से आपका सुयश होगा। [[रावण]] ने गुस्से में भरकर पुत्र से कहा - अरे मूर्ख! तुझे ऐसी बुद्धि किसने सिखाई?





Latest revision as of 14:03, 30 June 2017

यह मत जौं मानहु प्रभु मोरा
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक 'रामचरितमानस'
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि।
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली दोहा, चौपाई और सोरठा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड लंकाकाण्ड
चौपाई

यह मत जौं मानहु प्रभु मोरा। उभय प्रकार सुजसु जग तोरा॥
सुत सन कह दसकंठ रिसाई। असि मति सठ केहिं तोहि सिखाई॥

भावार्थ

हे प्रभो! यदि आप मेरी यह सम्मति मानेंगे, तो जगत् में दोनों ही प्रकार से आपका सुयश होगा। रावण ने गुस्से में भरकर पुत्र से कहा - अरे मूर्ख! तुझे ऐसी बुद्धि किसने सिखाई?



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चौपाई - मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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