राम धामदा पुरी सुहावनि: Difference between revisions
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चारि खानि जग जीव अपारा। अवध तजें तनु नहिं संसारा॥ | |||
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यह शोभायमान अयोध्यापुरी राम के परमधाम की देनेवाली है, सब लोकों में प्रसिद्ध है और अत्यंत पवित्र है। जगत् में चार प्रकार के अनंत जीव हैं, इनमें से जो कोई भी अयोध्या में शरीर छोड़ते हैं, वे फिर संसार में नहीं आते। | |||
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'''चौपाई'''- मात्रिक सम [[छन्द]] का भेद है। [[प्राकृत]] तथा [[अपभ्रंश]] के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित [[हिन्दी]] का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। [[तुलसीदास|गोस्वामी तुलसीदास]] ने [[रामचरितमानस]] में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है। | '''चौपाई'''- मात्रिक सम [[छन्द]] का भेद है। [[प्राकृत]] तथा [[अपभ्रंश]] के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित [[हिन्दी]] का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। [[तुलसीदास|गोस्वामी तुलसीदास]] ने [[रामचरितमानस]] में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है। |
Latest revision as of 14:16, 30 June 2017
राम धामदा पुरी सुहावनि
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
भाषा | अवधी भाषा |
शैली | सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | बालकाण्ड |
राम धामदा पुरी सुहावनि। लोक समस्त बिदित अति पावनि॥ |
- भावार्थ-
यह शोभायमान अयोध्यापुरी राम के परमधाम की देनेवाली है, सब लोकों में प्रसिद्ध है और अत्यंत पवित्र है। जगत् में चार प्रकार के अनंत जीव हैं, इनमें से जो कोई भी अयोध्या में शरीर छोड़ते हैं, वे फिर संसार में नहीं आते।
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चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख