प्रभु पद पंकज नावहिं सीसा: Difference between revisions
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वे प्रभु के चरण कमलों में सिर नवाते हैं। | वे प्रभु के चरण कमलों में सिर नवाते हैं। महान् बलवान रीछ और वानर गरज रहे हैं। श्री रामजी ने वानरों की सारी सेना देखी। तब कमल नेत्रों से कृपापूर्वक उनकी ओर दृष्टि डाली॥1॥ | ||
Latest revision as of 11:21, 1 August 2017
प्रभु पद पंकज नावहिं सीसा
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कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई, दोहा, छंद और सोरठा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | सुन्दरकाण्ड |
प्रभु पद पंकज नावहिं सीसा। गर्जहिं भालु महाबल कीसा॥ |
- भावार्थ
वे प्रभु के चरण कमलों में सिर नवाते हैं। महान् बलवान रीछ और वानर गरज रहे हैं। श्री रामजी ने वानरों की सारी सेना देखी। तब कमल नेत्रों से कृपापूर्वक उनकी ओर दृष्टि डाली॥1॥
left|30px|link=कपिपति बेगि बोलाए|पीछे जाएँ | प्रभु पद पंकज नावहिं सीसा | right|30px|link=राम कृपा बल पाइ कपिंदा|आगे जाएँ |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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