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*न्यायविनिश्चयविवरण [[अकलंकदेव]] के न्यायविनिश्चय की विशाल और महत्त्वपूर्ण टीका है।  
*न्यायविनिश्चयविवरण [[अकलंकदेव]] के न्यायविनिश्चय की विशाल और महत्त्वपूर्ण टीका है।  
*प्रमाणनिर्णय इनका मौलिक तर्कग्रन्थ है।  
*प्रमाणनिर्णय इनका मौलिक तर्कग्रन्थ है।  
*वादिराज, जो नाम से भी वादियों के विजेता जान पड़ते हैं, अपने समय के महान तार्किक ही नहीं, वैयाकरण, काव्यकार और अर्हद्भक्त भी थे।  
*वादिराज, जो नाम से भी वादियों के विजेता जान पड़ते हैं, अपने समय के महान् तार्किक ही नहीं, वैयाकरण, काव्यकार और अर्हद्भक्त भी थे।  
*'एकीभावस्तोत्र' के अन्त में बड़े अभिमान से कहते हैं कि जितने वैयाकरण हैं वे वादिराज के बाद हैं, जितने तार्किक हैं वे वादिराज के पीछे हैं तथा जितने काव्यकार हैं वे भी उनके पश्चाद्वर्ती हैं और तो क्या, भाक्तिक लोग भी भक्ति में उनकी बराबरी नहीं कर सकते। यथा-
*'एकीभावस्तोत्र' के अन्त में बड़े अभिमान से कहते हैं कि जितने वैयाकरण हैं वे वादिराज के बाद हैं, जितने तार्किक हैं वे वादिराज के पीछे हैं तथा जितने काव्यकार हैं वे भी उनके पश्चाद्वर्ती हैं और तो क्या, भाक्तिक लोग भी भक्ति में उनकी बराबरी नहीं कर सकते। यथा-
<blockquote><poem>वादिराजमनुशाब्दिकलोको वादिराजमनुतार्किकसिंह:।  
<blockquote><poem>वादिराजमनुशाब्दिकलोको वादिराजमनुतार्किकसिंह:।  

Latest revision as of 11:22, 1 August 2017

जैन आचार्य वादिराज

  • ये न्याय, व्याकरण, काव्य आदि साहित्य की अनेक विद्याओं के पारंगत थे और 'स्याद्वादविद्यापति' कहे जाते थे।
  • ये अपनी इस उपाधि से इतने अभिन्न थे कि इन्होंने स्वयं और उत्तरवर्ती ग्रन्थकारों ने इनका इसी उपाधि से उल्लेख किया है।
  • इन्होंने अपने पार्श्वनाथचरित में उसकी समाप्ति का समय ई. 1025 दिया है।
  • अत: इनका समय ई. 1025 है।
  • पार्श्वनाथचरित के अतिरिक्त इन्होंने न्यायविनिश्चयविवरण और प्रमाण-निर्णय ये दो न्यायग्रन्थ लिखे हैं।
  • न्यायविनिश्चयविवरण अकलंकदेव के न्यायविनिश्चय की विशाल और महत्त्वपूर्ण टीका है।
  • प्रमाणनिर्णय इनका मौलिक तर्कग्रन्थ है।
  • वादिराज, जो नाम से भी वादियों के विजेता जान पड़ते हैं, अपने समय के महान् तार्किक ही नहीं, वैयाकरण, काव्यकार और अर्हद्भक्त भी थे।
  • 'एकीभावस्तोत्र' के अन्त में बड़े अभिमान से कहते हैं कि जितने वैयाकरण हैं वे वादिराज के बाद हैं, जितने तार्किक हैं वे वादिराज के पीछे हैं तथा जितने काव्यकार हैं वे भी उनके पश्चाद्वर्ती हैं और तो क्या, भाक्तिक लोग भी भक्ति में उनकी बराबरी नहीं कर सकते। यथा-

वादिराजमनुशाब्दिकलोको वादिराजमनुतार्किकसिंह:।
वादिराजमनुकाव्यकृतस्ते वादिराजमनुभव्यसहाय:॥ -एकीभावस्तोत्र, श्लोक 26)

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