एक पिता के बिपुल कुमारा: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
('{{सूचना बक्सा पुस्तक |चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg |चित्र का नाम=रा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replacement - "पृथक " to "पृथक् ") |
||
Line 34: | Line 34: | ||
<poem> | <poem> | ||
;चौपाई | ;चौपाई | ||
एक पिता के बिपुल कुमारा। होहिं | एक पिता के बिपुल कुमारा। होहिं पृथक् गुन सील अचारा॥ | ||
कोउ पंडित कोउ तापस ग्याता। कोउ धनवंत सूर कोउ दाता॥1॥ | कोउ पंडित कोउ तापस ग्याता। कोउ धनवंत सूर कोउ दाता॥1॥ | ||
</poem> | </poem> |
Latest revision as of 13:27, 1 August 2017
एक पिता के बिपुल कुमारा
| |
कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | सोरठा, चौपाई, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | उत्तरकाण्ड |
सभी (7) काण्ड क्रमश: | बालकाण्ड, अयोध्या काण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किंधा काण्ड, सुंदरकाण्ड, लंकाकाण्ड, उत्तरकाण्ड |
एक पिता के बिपुल कुमारा। होहिं पृथक् गुन सील अचारा॥ |
- भावार्थ
एक पिता के बहुत से पुत्र पृथक-पृथक् गुण, स्वभाव और आचरण वाले होते हैं। कोई पंडित होता है, कोई तपस्वी, कोई ज्ञानी, कोई धनी, कोई शूरवीर, कोई दानी,॥1॥
left|30px|link=सुचि सुसील सेवक सुमति|पीछे जाएँ | एक पिता के बिपुल कुमारा | right|30px|link=कोउ सर्बग्य धर्मरत कोई|आगे जाएँ |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
पुस्तक- श्रीरामचरितमानस (उत्तरकाण्ड) |प्रकाशक- गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन- भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|पृष्ठ संख्या-515
संबंधित लेख