सब सुर बिष्नु बिरंचि समेता: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
सपना वर्मा (talk | contribs) ('{{सूचना बक्सा पुस्तक |चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg |चित्र का नाम=रा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replacement - "पृथक " to "पृथक् ") |
||
Line 33: | Line 33: | ||
;चौपाई | ;चौपाई | ||
सब सुर बिष्नु बिरंचि समेता। गए जहाँ सिव कृपानिकेता॥ | सब सुर बिष्नु बिरंचि समेता। गए जहाँ सिव कृपानिकेता॥ | ||
पृथक- | पृथक-पृथक् तिन्ह कीन्हि प्रसंसा। भए प्रसन्न चंद्र अवतंसा॥3॥ | ||
</poem> | </poem> | ||
{{poemclose}} | {{poemclose}} |
Latest revision as of 13:32, 1 August 2017
सब सुर बिष्नु बिरंचि समेता
| |
कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
भाषा | अवधी भाषा |
शैली | सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | बालकाण्ड |
सब सुर बिष्नु बिरंचि समेता। गए जहाँ सिव कृपानिकेता॥ |
- भावार्थ-
फिर वहाँ से विष्णु और ब्रह्मा सहित सब देवता वहाँ गए, जहाँ कृपा के धाम शिवजी थे। उन सबने शिवजी की अलग-अलग स्तुति की, तब शशिभूषण शिवजी प्रसन्न हो गए॥3॥
left|30px|link=रति गवनी सुनि संकर बानी|पीछे जाएँ | सब सुर बिष्नु बिरंचि समेता | right|30px|link=बोले कृपासिंधु बृषकेतू|आगे जाएँ |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख