सुधर्मन: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (Text replacement - "पश्चात " to "पश्चात् ")
 
(One intermediate revision by the same user not shown)
Line 3: Line 3:
*जैन संघ की स्थापना स्वयं महावीर ने की थी। इस संघ में उन्होंने अपने ग्यारह प्रमुख अनुयायी को शामिल किया था। उनके ग्यारह निकटतम शिष्यों को '''गणधर''' अर्थात "समूह का प्रधान" कहा जाता था।
*जैन संघ की स्थापना स्वयं महावीर ने की थी। इस संघ में उन्होंने अपने ग्यारह प्रमुख अनुयायी को शामिल किया था। उनके ग्यारह निकटतम शिष्यों को '''गणधर''' अर्थात "समूह का प्रधान" कहा जाता था।
*तीर्थंकर महावीर के जीवन काल में ही 10 गणधरों की मृत्यु हो गई थी, केवल एक गणधर 'सुधर्मन' ही जीवित रहा था।  
*तीर्थंकर महावीर के जीवन काल में ही 10 गणधरों की मृत्यु हो गई थी, केवल एक गणधर 'सुधर्मन' ही जीवित रहा था।  
*महावीर की मृत्यु के पश्चात उनके एकमात्र बचे गणधर सुधर्मन को जैन संघ का थेर बनाया गया।  
*महावीर की मृत्यु के पश्चात् उनके एकमात्र बचे गणधर सुधर्मन को जैन संघ का थेर बनाया गया।  
*सुधर्मन की महावीर स्वामी की मृत्यु के बीस वर्ष बाद मृत्यु हुई।
*सुधर्मन की महावीर स्वामी की मृत्यु के बीस वर्ष बाद मृत्यु हुई।
*सुधर्मन की मृत्यु के बाद जम्बु संघ के प्रधान रहे, जो 44 वर्षों तक [[जैन धर्म]] की सेवा करते रहे।  
*सुधर्मन की मृत्यु के बाद जम्बु संघ के प्रधान रहे, जो 44 वर्षों तक [[जैन धर्म]] की सेवा करते रहे।  
Line 12: Line 12:
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{जैन धर्म2}}
{{जैन धर्म2}}
[[Category:जैन तीर्थंकर]][[Category:धर्म प्रवर्तक और संत]][[Category:जैन धर्म कोश]][[Category:इतिहास कोश]]
[[Category:जैन तीर्थंकर]][[Category:धर्म प्रवर्तक और संत]][[Category:जैन धर्म कोश]][[Category:धर्म कोश]][[Category:इतिहास कोश]]
__INDEX__
__INDEX__

Latest revision as of 07:34, 7 November 2017

सुधर्मन जैन तीर्थंकर महावीर स्वामी के बाद जैन संघ के अध्यक्ष नियुक्त हुए थे। जैन संघ के अध्यक्ष के रूप में सुधर्मन ने लगातार 22 वर्षों तक जैन धर्म की सेवा की थी। सुधर्मन महावीर स्वामी के प्रमुख ग्यारह अनुयायियों में से एक था।

  • जैन संघ की स्थापना स्वयं महावीर ने की थी। इस संघ में उन्होंने अपने ग्यारह प्रमुख अनुयायी को शामिल किया था। उनके ग्यारह निकटतम शिष्यों को गणधर अर्थात "समूह का प्रधान" कहा जाता था।
  • तीर्थंकर महावीर के जीवन काल में ही 10 गणधरों की मृत्यु हो गई थी, केवल एक गणधर 'सुधर्मन' ही जीवित रहा था।
  • महावीर की मृत्यु के पश्चात् उनके एकमात्र बचे गणधर सुधर्मन को जैन संघ का थेर बनाया गया।
  • सुधर्मन की महावीर स्वामी की मृत्यु के बीस वर्ष बाद मृत्यु हुई।
  • सुधर्मन की मृत्यु के बाद जम्बु संघ के प्रधान रहे, जो 44 वर्षों तक जैन धर्म की सेवा करते रहे।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख