निगम नेति सिव ध्यान न पावा: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replacement - "चौपाई छंद" to "चौपाई, छंद")
m (Text replacement - "अर्थात " to "अर्थात् ")
 
Line 38: Line 38:


;भावार्थ
;भावार्थ
वेद जिनके विषय में 'नेति-नेति' कहकर रह जाते हैं और शिव भी जिन्हें ध्यान में नहीं पाते (अर्थात जो मन और वाणी से नितांत परे हैं), वे ही राम माया से बने हुए मृग के पीछे दौड़ रहे हैं। वह कभी निकट आ जाता है और फिर दूर भाग जाता है। कभी तो प्रकट हो जाता है और कभी छिप जाता है।॥6॥
वेद जिनके विषय में 'नेति-नेति' कहकर रह जाते हैं और शिव भी जिन्हें ध्यान में नहीं पाते (अर्थात् जो मन और वाणी से नितांत परे हैं), वे ही राम माया से बने हुए मृग के पीछे दौड़ रहे हैं। वह कभी निकट आ जाता है और फिर दूर भाग जाता है। कभी तो प्रकट हो जाता है और कभी छिप जाता है।॥6॥





Latest revision as of 07:51, 7 November 2017

निगम नेति सिव ध्यान न पावा
कवि गोस्वामी तुलसीदास
मूल शीर्षक रामचरितमानस
मुख्य पात्र राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि
प्रकाशक गीता प्रेस गोरखपुर
शैली सोरठा, चौपाई, छंद और दोहा
संबंधित लेख दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा
काण्ड अरण्यकाण्ड
चौपाई

निगम नेति सिव ध्यान न पावा। मायामृग पाछें सो धावा॥
कबहुँ निकट पुनि दूरि पराई। कबहुँक प्रगटइ कबहुँ छपाई॥6॥

भावार्थ

वेद जिनके विषय में 'नेति-नेति' कहकर रह जाते हैं और शिव भी जिन्हें ध्यान में नहीं पाते (अर्थात् जो मन और वाणी से नितांत परे हैं), वे ही राम माया से बने हुए मृग के पीछे दौड़ रहे हैं। वह कभी निकट आ जाता है और फिर दूर भाग जाता है। कभी तो प्रकट हो जाता है और कभी छिप जाता है।॥6॥



left|30px|link=सीता केरि करेहु रखवारी|पीछे जाएँ निगम नेति सिव ध्यान न पावा right|30px|link=प्रगटत दुरत करत छल भूरी|आगे जाएँ


चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख