प्रिया बचन कस कहसि कुभाँती: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
कविता भाटिया (talk | contribs) ('{{सूचना बक्सा पुस्तक |चित्र=Sri-ramcharitmanas.jpg |चित्र का नाम=रा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replacement - "अर्थात " to "अर्थात् ") |
||
Line 37: | Line 37: | ||
;भावार्थ | ;भावार्थ | ||
हे प्रिये! हे भीरु! विश्वास और प्रेम को नष्ट करके ऐसे बुरी तरह के वचन कैसे कह रही हो। मेरे तो भरत और [[रामचन्द्र]] दो आँखें ( | हे प्रिये! हे भीरु! विश्वास और प्रेम को नष्ट करके ऐसे बुरी तरह के वचन कैसे कह रही हो। मेरे तो भरत और [[रामचन्द्र]] दो आँखें (अर्थात् एक से) हैं, यह मैं [[शंकर|शंकरजी]] की साक्षी देकर सत्य कहता हूँ॥3॥ | ||
{{लेख क्रम4| पिछला= लखी महीप कराल कठोरा|मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला= अवसि दूतु मैं पठइब प्राता}} | {{लेख क्रम4| पिछला= लखी महीप कराल कठोरा|मुख्य शीर्षक=रामचरितमानस |अगला= अवसि दूतु मैं पठइब प्राता}} | ||
Latest revision as of 07:55, 7 November 2017
प्रिया बचन कस कहसि कुभाँती
| |
कवि | गोस्वामी तुलसीदास |
मूल शीर्षक | रामचरितमानस |
मुख्य पात्र | राम, सीता, लक्ष्मण, हनुमान, रावण आदि |
प्रकाशक | गीता प्रेस गोरखपुर |
शैली | चौपाई, सोरठा, छन्द और दोहा |
संबंधित लेख | दोहावली, कवितावली, गीतावली, विनय पत्रिका, हनुमान चालीसा |
काण्ड | अयोध्या काण्ड |
प्रिया बचन कस कहसि कुभाँती। भीर प्रतीति प्रीति करि हाँती॥ |
- भावार्थ
हे प्रिये! हे भीरु! विश्वास और प्रेम को नष्ट करके ऐसे बुरी तरह के वचन कैसे कह रही हो। मेरे तो भरत और रामचन्द्र दो आँखें (अर्थात् एक से) हैं, यह मैं शंकरजी की साक्षी देकर सत्य कहता हूँ॥3॥
left|30px|link=लखी महीप कराल कठोरा|पीछे जाएँ | प्रिया बचन कस कहसि कुभाँती | right|30px|link=अवसि दूतु मैं पठइब प्राता|आगे जाएँ |
चौपाई- मात्रिक सम छन्द का भेद है। प्राकृत तथा अपभ्रंश के 16 मात्रा के वर्णनात्मक छन्दों के आधार पर विकसित हिन्दी का सर्वप्रिय और अपना छन्द है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में चौपाई छन्द का बहुत अच्छा निर्वाह किया है। चौपाई में चार चरण होते हैं, प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं तथा अन्त में गुरु होता है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख