गंगा माता मंदिर, जयपुर: Difference between revisions
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'''गंगा माता मंदिर''' [[जयपुर]], [[राजस्थान]] का प्रसिद्ध [[हिन्दू धर्म|हिन्दू]] धार्मिक स्थल है। यह जयपुर के प्रमुख पर्यटन स्थलों में शामिल किया जाता है। जयपुर के | '''गंगा माता मंदिर''' [[जयपुर]], [[राजस्थान]] का प्रसिद्ध [[हिन्दू धर्म|हिन्दू]] धार्मिक स्थल है। यह जयपुर के प्रमुख पर्यटन स्थलों में शामिल किया जाता है। जयपुर के महाराजा सवाई माधोसिंह द्वितीय ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। '[[गोविंद देवजी का मंदिर जयपुर|गोविंद देवजी मंदिर]]' के पीछे जयनिवास उद्यान में बना गंगा माता मंदिर कई मायनों में ख़ास है। यहाँ का स्थापत्य, शिल्प, खूबसूरती और विशेषताएं ही दर्शनीय नहीं हैं, बल्कि ख़ास हैं इस मंदिर के निर्माण के पीछे राजपरिवार के सदस्यों की भावनाएं। | ||
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जयपुर के राजपरिवार की अमूल्य भावनाओं के साथ इस संगमरमर और लाल पत्थरों से बने मंदिर में कुछ बहुत ही मूल्यावान वस्तु भी है। वह है इस मंदिर में गंगा माता की मूर्ति के पास रखा लगभग 11 किलोग्राम का [[स्वर्ण]] कलश। 10 किलो तथा 812 ग्राम के इस सोने के कलश में गंगाजल को सुरक्षित रखा गया है। इतने मूल्यवान कलश के लिए यहाँ बंदूकधारी प्रहरी भी नियुक्त किए गए हैं। | जयपुर के राजपरिवार की अमूल्य भावनाओं के साथ इस संगमरमर और लाल पत्थरों से बने मंदिर में कुछ बहुत ही मूल्यावान वस्तु भी है। वह है इस मंदिर में गंगा माता की मूर्ति के पास रखा लगभग 11 किलोग्राम का [[स्वर्ण]] कलश। 10 किलो तथा 812 ग्राम के इस सोने के कलश में गंगाजल को सुरक्षित रखा गया है। इतने मूल्यवान कलश के लिए यहाँ बंदूकधारी प्रहरी भी नियुक्त किए गए हैं। | ||
==गंगा भक्त माधोसिंह== | ==गंगा भक्त माधोसिंह== | ||
जयपुर के | जयपुर के सवाई माधोसिंह द्वितीय [[गंगा]] के अनन्य [[भक्त]] थे। उनकी दिनचर्या में [[गंगाजल]] इस कदर समाया था कि [[स्नान]], पीने और [[पूजा]]-पाठ में वे गंगाजल का ही इस्तेमाल किया करते थे। महाराजा माधोसिंह के लिए निरंतर गंगाजल लाया जाता था। सवाई माधोसिंह अपनी रानियों के साथ गर्मी में गंगा किनारे विश्राम करने के लिए शाही रेल से जाया करते थे। [[हरिद्वार]] में 'हर की पौड़ी' पर बहने वाली गंगा की बदली धारा को वापस लाने [[अंग्रेज़]] सरकार पर दबाव बनाने के लिए [[मदनमोहन मालवीय|पंडित मदनमोहन मालवीय]] के बुलावे पर वे हरिद्वार गए थे। [[1910]] ई. में जब [[जयपुर]] [[प्लेग]] की चपेट में आ गया, तब भी महाराजा माधोसिंह प्रार्थना करने के लिए हरिद्वार गए थे। प्रिंस एडवर्ड जब [[ब्रिटेन]] की गद्दी पर बैठे, तब महाराजा माधोसिंह द्वितीय को बुलाया गया। किंतु इंग्लैण्ड गंगाजल कैसे ले जाया जाता। न जाते तो मित्र को नाराज़ करते। आखिर हल निकाला गया। दस हज़ार से ज़्यादा [[चाँदी]] के सिक्कों को पिघलाकर दो विशाल कलशों का निर्माण कराया गया। इनमें गंगाजल इंग्लैण्ड ले जाया गया। यही नहीं यात्रा से पूर्व विमान को भी गंगाजल से धोया गया। ये विशाल कलश आज भी सिटी पैलेस के 'सर्वतोभद्र' में देखे जा सकते हैं। गंगा माता के लिए अनंत आस्था के चलते उन्होंने [[वर्ष]] [[1914]] में 'गोविंद देवजी मंदिर' के परिसर में गंगामाता का भव्य मंदिर बनवाया। इसी मंदिर में लगभग 11 कि.ग्रा. के [[स्वर्ण]] कलश में गंगाजल भरवाकर यहां रखवाया। उस समय इस मंदिर के निर्माण पर लगभग 36 हज़ार [[रुपया|रुपए]] खर्च हुए थे।<ref name="aa"/> | ||
====मूर्ति के लिए मंदिर==== | ====मूर्ति के लिए मंदिर==== | ||
महाराजा सवाई माधोसिंह की पटरानी जादूनजी के पास 'जनानी ड्योढी महल' में गंगा माता की एक मूर्ति थी। पटरानी की सेविकाएं गंगा माता की सेवा, पूजा किया करती थीं। रानी की इच्छा थी कि इस मूर्ति की पूजा निरंतर होती रहे। इसी कारण इस मंदिर के निर्माण का विचार महाराजा माधोसिंह को आया। उन्होंने मकराना से संगमरमर और [[करौली]] से लाल पत्थर मंगाकर मंदिर का निर्माण कराया। | महाराजा सवाई माधोसिंह की पटरानी जादूनजी के पास 'जनानी ड्योढी महल' में गंगा माता की एक मूर्ति थी। पटरानी की सेविकाएं गंगा माता की सेवा, पूजा किया करती थीं। रानी की इच्छा थी कि इस मूर्ति की पूजा निरंतर होती रहे। इसी कारण इस मंदिर के निर्माण का विचार महाराजा माधोसिंह को आया। उन्होंने मकराना से संगमरमर और [[करौली]] से लाल पत्थर मंगाकर मंदिर का निर्माण कराया। | ||
==पत्थर चोरी की घटना== | ==पत्थर चोरी की घटना== | ||
मंदिर से जुड़ी एक और अनोखी घटना का वर्णन मिलता है। मंदिर के निर्माण के लिए मकराना और करौली से घड़ाई के कलात्मक पत्थर मंगाए गए थे। लेकिन धीरे-धीरे निर्माण स्थल से ये पत्थर चोरी होने लगे। मंदिर के पत्थर चोरी की अनोखी घटना ने सभी को अचरज में डाल दिया। साथ ही सत्य की तह तक पहुंचना भी | मंदिर से जुड़ी एक और अनोखी घटना का वर्णन मिलता है। मंदिर के निर्माण के लिए मकराना और करौली से घड़ाई के कलात्मक पत्थर मंगाए गए थे। लेकिन धीरे-धीरे निर्माण स्थल से ये पत्थर चोरी होने लगे। मंदिर के पत्थर चोरी की अनोखी घटना ने सभी को अचरज में डाल दिया। साथ ही सत्य की तह तक पहुंचना भी ज़रूरी था। महाराजा ने गुप्तचरों को इस राज की गुत्थी सुलझाने को कहा। पता चला कि स्थानीय लोग चोरी चुपके यहां से एक-एक पत्थर सरका रहे थे। ये सभी लोग वे थे, जिन्हें भांग घोटने की आदत थी। सभी के बारे में महाराजा को जानकारी लगी तो कुछ को तलब किया गया। भांग घोटने वालों ने अपनी गलती स्वीकार करते हुए कहा कि इस पत्थर पर भांग बहुत ही अच्छी घुटती है, इसलिए पत्थर चोरी करना पड़ा। महाराजा सवाई माधोसिंह द्वितीय ने सभी पत्थर चोरों को क्षमा कर दिया। | ||
==दुर्लभ चित्र और शिलालेख== | ==दुर्लभ चित्र और शिलालेख== | ||
मंदिर में दुर्लभ और बेशकीमती [[स्वर्ण]] के कलश के अतिरिक्त [[राधा]]-[[कृष्ण]] और [[हरिद्वार]] की 'हर की पौड़ी' के दुर्लभ और सुंदर चित्र सजे हैं। यहां [[कवि]] पंडित रामप्रसाद द्वारा [[गंगा]] की महिमा के लिए रचा गया [[शिलालेख]] आज भी ज्यों का त्यों है। मंदिर के भित्तिचित्र, शिल्प और स्थापत्य देखने योग्य हैं, जो पर्यटकों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करने की अद्भुत क्षमता रखते हैं।<ref name="aa"/> | मंदिर में दुर्लभ और बेशकीमती [[स्वर्ण]] के कलश के अतिरिक्त [[राधा]]-[[कृष्ण]] और [[हरिद्वार]] की 'हर की पौड़ी' के दुर्लभ और सुंदर चित्र सजे हैं। यहां [[कवि]] पंडित रामप्रसाद द्वारा [[गंगा]] की महिमा के लिए रचा गया [[शिलालेख]] आज भी ज्यों का त्यों है। मंदिर के भित्तिचित्र, शिल्प और स्थापत्य देखने योग्य हैं, जो पर्यटकों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करने की अद्भुत क्षमता रखते हैं।<ref name="aa"/> |
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गंगा माता मंदिर जयपुर, राजस्थान का प्रसिद्ध हिन्दू धार्मिक स्थल है। यह जयपुर के प्रमुख पर्यटन स्थलों में शामिल किया जाता है। जयपुर के महाराजा सवाई माधोसिंह द्वितीय ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। 'गोविंद देवजी मंदिर' के पीछे जयनिवास उद्यान में बना गंगा माता मंदिर कई मायनों में ख़ास है। यहाँ का स्थापत्य, शिल्प, खूबसूरती और विशेषताएं ही दर्शनीय नहीं हैं, बल्कि ख़ास हैं इस मंदिर के निर्माण के पीछे राजपरिवार के सदस्यों की भावनाएं।
स्थिति
"आस्था की नगरी" और "छोटी काशी" कहलाने वाले 'गुलाबी शहर' जयपुर की बात ही कुछ निराली है। यहां के महल, दुर्ग, प्राचीरें और मंदिर सिर्फ स्थापत्य का नायाब नमूना ही नहीं हैं, जयपुर का हर पत्थर एक कहानी कहता है। इतिहास की तह में जाएं तो जयपुर के बारे में ऐसी कहानियां सामने आती हैं, जिन पर आज के युग में विश्वास करना कठिन है। जयपुर का शाही ठाठ सिर्फ दिखावटी नहीं था, और न ही यह शान शौकत यहां के राजा महाराजाओं की सनक थी। जयपुर शौक और शाही आदतों का शहर है। यहां श्रद्धा भी एक रिवाज के साथ निबाही गई है। कुछ ऐसा ही जयपुर के 'गोविंद देवजी मंदिर' में स्थित 'गंगा माता मंदिर' के बारे में कहा जा सकता है।[1]
मूल्यवान स्वर्ण कलश
जयपुर के राजपरिवार की अमूल्य भावनाओं के साथ इस संगमरमर और लाल पत्थरों से बने मंदिर में कुछ बहुत ही मूल्यावान वस्तु भी है। वह है इस मंदिर में गंगा माता की मूर्ति के पास रखा लगभग 11 किलोग्राम का स्वर्ण कलश। 10 किलो तथा 812 ग्राम के इस सोने के कलश में गंगाजल को सुरक्षित रखा गया है। इतने मूल्यवान कलश के लिए यहाँ बंदूकधारी प्रहरी भी नियुक्त किए गए हैं।
गंगा भक्त माधोसिंह
जयपुर के सवाई माधोसिंह द्वितीय गंगा के अनन्य भक्त थे। उनकी दिनचर्या में गंगाजल इस कदर समाया था कि स्नान, पीने और पूजा-पाठ में वे गंगाजल का ही इस्तेमाल किया करते थे। महाराजा माधोसिंह के लिए निरंतर गंगाजल लाया जाता था। सवाई माधोसिंह अपनी रानियों के साथ गर्मी में गंगा किनारे विश्राम करने के लिए शाही रेल से जाया करते थे। हरिद्वार में 'हर की पौड़ी' पर बहने वाली गंगा की बदली धारा को वापस लाने अंग्रेज़ सरकार पर दबाव बनाने के लिए पंडित मदनमोहन मालवीय के बुलावे पर वे हरिद्वार गए थे। 1910 ई. में जब जयपुर प्लेग की चपेट में आ गया, तब भी महाराजा माधोसिंह प्रार्थना करने के लिए हरिद्वार गए थे। प्रिंस एडवर्ड जब ब्रिटेन की गद्दी पर बैठे, तब महाराजा माधोसिंह द्वितीय को बुलाया गया। किंतु इंग्लैण्ड गंगाजल कैसे ले जाया जाता। न जाते तो मित्र को नाराज़ करते। आखिर हल निकाला गया। दस हज़ार से ज़्यादा चाँदी के सिक्कों को पिघलाकर दो विशाल कलशों का निर्माण कराया गया। इनमें गंगाजल इंग्लैण्ड ले जाया गया। यही नहीं यात्रा से पूर्व विमान को भी गंगाजल से धोया गया। ये विशाल कलश आज भी सिटी पैलेस के 'सर्वतोभद्र' में देखे जा सकते हैं। गंगा माता के लिए अनंत आस्था के चलते उन्होंने वर्ष 1914 में 'गोविंद देवजी मंदिर' के परिसर में गंगामाता का भव्य मंदिर बनवाया। इसी मंदिर में लगभग 11 कि.ग्रा. के स्वर्ण कलश में गंगाजल भरवाकर यहां रखवाया। उस समय इस मंदिर के निर्माण पर लगभग 36 हज़ार रुपए खर्च हुए थे।[1]
मूर्ति के लिए मंदिर
महाराजा सवाई माधोसिंह की पटरानी जादूनजी के पास 'जनानी ड्योढी महल' में गंगा माता की एक मूर्ति थी। पटरानी की सेविकाएं गंगा माता की सेवा, पूजा किया करती थीं। रानी की इच्छा थी कि इस मूर्ति की पूजा निरंतर होती रहे। इसी कारण इस मंदिर के निर्माण का विचार महाराजा माधोसिंह को आया। उन्होंने मकराना से संगमरमर और करौली से लाल पत्थर मंगाकर मंदिर का निर्माण कराया।
पत्थर चोरी की घटना
मंदिर से जुड़ी एक और अनोखी घटना का वर्णन मिलता है। मंदिर के निर्माण के लिए मकराना और करौली से घड़ाई के कलात्मक पत्थर मंगाए गए थे। लेकिन धीरे-धीरे निर्माण स्थल से ये पत्थर चोरी होने लगे। मंदिर के पत्थर चोरी की अनोखी घटना ने सभी को अचरज में डाल दिया। साथ ही सत्य की तह तक पहुंचना भी ज़रूरी था। महाराजा ने गुप्तचरों को इस राज की गुत्थी सुलझाने को कहा। पता चला कि स्थानीय लोग चोरी चुपके यहां से एक-एक पत्थर सरका रहे थे। ये सभी लोग वे थे, जिन्हें भांग घोटने की आदत थी। सभी के बारे में महाराजा को जानकारी लगी तो कुछ को तलब किया गया। भांग घोटने वालों ने अपनी गलती स्वीकार करते हुए कहा कि इस पत्थर पर भांग बहुत ही अच्छी घुटती है, इसलिए पत्थर चोरी करना पड़ा। महाराजा सवाई माधोसिंह द्वितीय ने सभी पत्थर चोरों को क्षमा कर दिया।
दुर्लभ चित्र और शिलालेख
मंदिर में दुर्लभ और बेशकीमती स्वर्ण के कलश के अतिरिक्त राधा-कृष्ण और हरिद्वार की 'हर की पौड़ी' के दुर्लभ और सुंदर चित्र सजे हैं। यहां कवि पंडित रामप्रसाद द्वारा गंगा की महिमा के लिए रचा गया शिलालेख आज भी ज्यों का त्यों है। मंदिर के भित्तिचित्र, शिल्प और स्थापत्य देखने योग्य हैं, जो पर्यटकों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करने की अद्भुत क्षमता रखते हैं।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 गंगा माता मंदिर (हिन्दी) पिंकसिटी.कॉम। अभिगमन तिथि: 26 दिसम्बर, 2014।