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*आचार्य कुन्‍दकुन्‍द पर दो उत्‍तरदायित्‍व थे- एक तो अध्‍यात्‍मशास्‍त्र को व्‍यवस्‍थित लेखन का रूप देना और दूसरा शिथिल आचार के विरुद्ध सशक्‍त आन्‍दोलन चलाना। दोनों ही कार्य उन्‍होंने सामर्थ्‍यपूर्वक किये।
*आचार्य कुन्‍दकुन्‍द पर दो उत्‍तरदायित्‍व थे- एक तो अध्‍यात्‍मशास्‍त्र को व्‍यवस्‍थित लेखन का रूप देना और दूसरा शिथिल आचार के विरुद्ध सशक्‍त आन्‍दोलन चलाना। दोनों ही कार्य उन्‍होंने सामर्थ्‍यपूर्वक किये।
*कुन्‍दकुन्‍द की ग्रंथ संपदा बड़ी है। उन्‍होंने लगभग आधा दर्जन ग्रंथ लिखे, जिनमें समयसार (जिसका मूल नाम है 'समयपाहुड़') सर्वाधिक प्रभावशाली रहा।
*कुन्‍दकुन्‍द की ग्रंथ संपदा बड़ी है। उन्‍होंने लगभग आधा दर्जन ग्रंथ लिखे, जिनमें समयसार (जिसका मूल नाम है 'समयपाहुड़') सर्वाधिक प्रभावशाली रहा।
*आचार्य कुन्‍दकुन्‍द के एक हजार वर्ष बाद समयसार पर आचार्य अमृतचन्‍द्रदेव ने [[संस्‍कृत]] में गंभीर [[टीका]] लिखी, जिसका नाम है- 'आत्म ख्याति', समयसार का मर्म जानने के लिए आज इसी टीका का आश्रय लिया जाता है।
*आचार्य कुन्‍दकुन्‍द के एक हजार वर्ष बाद समयसार पर आचार्य अमृतचन्‍द्रदेव ने [[संस्कृत]] में गंभीर [[टीका]] लिखी, जिसका नाम है- 'आत्म ख्याति', समयसार का मर्म जानने के लिए आज इसी टीका का आश्रय लिया जाता है।
*समयसार की प्रशंसा करते हुए वे इसे "जगत का अक्षय चक्षु" कहते हैं। उनका मानना है कि समयसार से श्रेष्‍ठ कुछ भी नहीं है।
*समयसार की प्रशंसा करते हुए वे इसे "जगत का अक्षय चक्षु" कहते हैं। उनका मानना है कि समयसार से श्रेष्‍ठ कुछ भी नहीं है।
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समयसार (अंग्रेज़ी: Samayasara) दिगम्बर सम्प्रदाय का महान ग्रंथ है। यह जैन परंपरा के दिग्‍गज आचार्य कुन्दकुन्द द्वारा रचित है। दो हजार वर्षों से आज तक दिगम्‍बर साधु स्‍वयं को कुन्‍कुन्‍दाचार्य की परंपरा का कहलाने का गौरव अनुभव करते है। यह ग्रंथ दो-दो पंक्‍तियों से बनी 415 गाथाओं का संग्रह है। ये गाथाएँ पाली भाषा में लिखी गई हैं।

  • आचार्य कुन्‍दकुन्‍द पर दो उत्‍तरदायित्‍व थे- एक तो अध्‍यात्‍मशास्‍त्र को व्‍यवस्‍थित लेखन का रूप देना और दूसरा शिथिल आचार के विरुद्ध सशक्‍त आन्‍दोलन चलाना। दोनों ही कार्य उन्‍होंने सामर्थ्‍यपूर्वक किये।
  • कुन्‍दकुन्‍द की ग्रंथ संपदा बड़ी है। उन्‍होंने लगभग आधा दर्जन ग्रंथ लिखे, जिनमें समयसार (जिसका मूल नाम है 'समयपाहुड़') सर्वाधिक प्रभावशाली रहा।
  • आचार्य कुन्‍दकुन्‍द के एक हजार वर्ष बाद समयसार पर आचार्य अमृतचन्‍द्रदेव ने संस्कृत में गंभीर टीका लिखी, जिसका नाम है- 'आत्म ख्याति', समयसार का मर्म जानने के लिए आज इसी टीका का आश्रय लिया जाता है।
  • समयसार की प्रशंसा करते हुए वे इसे "जगत का अक्षय चक्षु" कहते हैं। उनका मानना है कि समयसार से श्रेष्‍ठ कुछ भी नहीं है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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