भाव संग्रह: Difference between revisions

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*आचार्य [[देवसेन]] ने [[प्राकृत]] में एक भावसंग्रह लिखा है। उसी का यह [[संस्कृत]] अनुवाद है। दोनों ग्रन्थों को आमने सामने रखकर देखने पर यह बात स्पष्ट हो जाती है कि यह संस्कृत भावसंग्रह 'प्राकृतभावसंग्रह' का शब्द न होकर अर्थश: भावानुवाद है। रचना अनुष्टुप छन्द में है। इसके कर्ता अथवा रूपान्तरकार भट्टारक लक्ष्मीचंद्र के शिष्य पंडित वामदेव हैं। प्राकृत व संस्कृत दोनों भावसंग्रहों का तुलनात्मक अध्ययन करने पर उनमें कई बातों में वैशिष्ट्य भी दिखाई देता है।  
'''भाव संग्रह''' नामक [[ग्रन्थ]] की रचना आचार्य [[देवसेन]] ने [[प्राकृत भाषा]] में की थी। बाद में इस ग्रन्थ का [[संस्कृत]] में भी अनुवाद हुआ। दोनों ग्रन्थों को आमने-सामने रखकर देखने पर यह बात स्पष्ट हो जाती है कि यह संस्कृत भाव संग्रह 'प्राकृतभावसंग्रह' का शब्द न होकर अर्थश: भावानुवाद है।
*उदाहरण की लिए पंचम गुणस्थान का कथन करते हुए संस्कृत भाव संग्रह में 11 प्रतिमाओं का भी कथन है, जो मूल प्राकृतभावसंग्रह में नहीं है। प्राकृतभावसंग्रह में जिन चरणों में चंदनलेप का कथन है वह संस्कृत भावसंग्रह में नहीं है। देवपूजा, गुरु उपासना आदि षट्कर्मों का संस्कृत भावसंग्रह में कथन है। प्राकृत भावसंग्रह में उनका कथन नहीं है, आदि । *इस संस्कृत भावसंग्रह में कुल श्लोक 782 हैं, रचना साधारण है। इसमें [[गीता]] के उद्धरण भी कई स्थलों पर दिए गए हैं। कई सैद्धान्तिक विषयों का खंडन-मंडन भी उपलब्ध है। जैसे - नित्यैकान्त, क्षणिकैकान्त, वैनयिकवाद, केवलीभुक्ति, स्त्रीमोक्ष, सग्रंथमोक्ष आदि की समीक्षा करके अपने पक्ष को प्रस्तुत किया गया है।
====तुलनात्मक अध्ययन====
इसकी रचना [[अनुष्टुप छन्द]] में है। इसके कर्ता अथवा रूपान्तरकार भट्टारक लक्ष्मीचंद्र के शिष्य पंडित वामदेव हैं। प्राकृत व संस्कृत दोनों भावसंग्रहों का तुलनात्मक अध्ययन करने पर उनमें कई बातों में वैशिष्ट्य भी दिखाई देता है। उदाहरण की लिए पंचम [[गुणस्थान]] का कथन करते हुए संस्कृत भाव संग्रह में 11 प्रतिमाओं का भी कथन है, जो मूल प्राकृतभावसंग्रह में नहीं है। प्राकृतभावसंग्रह में जिन चरणों में चंदनलेप का कथन है वह संस्कृत भावसंग्रह में नहीं है। देवपूजा, गुरु उपासना आदि षट्कर्मों का संस्कृत भावसंग्रह में कथन है। प्राकृत भावसंग्रह में उनका कथन नहीं है, आदि।
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इस संस्कृत भावसंग्रह में कुल [[श्लोक]] 782 हैं, रचना साधारण है। इसमें [[गीता]] के उद्धरण भी कई स्थलों पर दिए गए हैं। कई सैद्धान्तिक विषयों का खंडन-मंडन भी उपलब्ध है, जैसे- नित्यैकान्त, क्षणिकैकान्त, वैनयिकवाद, केवलीभुक्ति, स्त्रीमोक्ष, सग्रंथमोक्ष आदि की समीक्षा करके अपने पक्ष को प्रस्तुत किया गया है।


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Latest revision as of 12:42, 21 July 2014

भाव संग्रह नामक ग्रन्थ की रचना आचार्य देवसेन ने प्राकृत भाषा में की थी। बाद में इस ग्रन्थ का संस्कृत में भी अनुवाद हुआ। दोनों ग्रन्थों को आमने-सामने रखकर देखने पर यह बात स्पष्ट हो जाती है कि यह संस्कृत भाव संग्रह 'प्राकृतभावसंग्रह' का शब्द न होकर अर्थश: भावानुवाद है।

तुलनात्मक अध्ययन

इसकी रचना अनुष्टुप छन्द में है। इसके कर्ता अथवा रूपान्तरकार भट्टारक लक्ष्मीचंद्र के शिष्य पंडित वामदेव हैं। प्राकृत व संस्कृत दोनों भावसंग्रहों का तुलनात्मक अध्ययन करने पर उनमें कई बातों में वैशिष्ट्य भी दिखाई देता है। उदाहरण की लिए पंचम गुणस्थान का कथन करते हुए संस्कृत भाव संग्रह में 11 प्रतिमाओं का भी कथन है, जो मूल प्राकृतभावसंग्रह में नहीं है। प्राकृतभावसंग्रह में जिन चरणों में चंदनलेप का कथन है वह संस्कृत भावसंग्रह में नहीं है। देवपूजा, गुरु उपासना आदि षट्कर्मों का संस्कृत भावसंग्रह में कथन है। प्राकृत भावसंग्रह में उनका कथन नहीं है, आदि।

श्लोक तथा रचना

इस संस्कृत भावसंग्रह में कुल श्लोक 782 हैं, रचना साधारण है। इसमें गीता के उद्धरण भी कई स्थलों पर दिए गए हैं। कई सैद्धान्तिक विषयों का खंडन-मंडन भी उपलब्ध है, जैसे- नित्यैकान्त, क्षणिकैकान्त, वैनयिकवाद, केवलीभुक्ति, स्त्रीमोक्ष, सग्रंथमोक्ष आदि की समीक्षा करके अपने पक्ष को प्रस्तुत किया गया है।


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